कहना है मुझे।
सही को सही और ग़लत को ग़लत कहना है मुझे।
ग़लत होते देख के यूं खामोश नहीं रहना है मुझे।
कट्टरता नहीं अच्छी न ही कट्टर बनना है मुझे;
सही को सही और ग़लत को ग़लत कहना है मुझे।
सच नहीं छुपता कभी पल भर की आंधियों में;
आएगा सामने ऐसा उनसे बस कहना है मुझे।
तुम लाख ग़लत कर लो पर याद ये बात रखना;
एक दिन हिसाब होगा और न कुछ कहना है मुझे।
तुम जो मन में आए कहते हो वतन के वीरों को;
उनका यूं बार बार अपमान न सहना है मुझे।
हर देश के कानून होते हैं अलग अलग माना ;
इतनी आज़ादी और कहां मिलती पूछना है मझे।
सहनशीलता को कमज़ोरी तुम समझ बैठे हो सुनो;
मर्यादित हैं पर अपनी हद में ही सब करना है मुझे।
लिखना है हर दर्द का एहसास जो तुमने है दिए;
हां, गल्त को ग़लत और सही को सही कहना है मुझे।
कामनी गुप्ता***
जम्मू !