रचनाकारों में ‘चारित्रिक-पतन’ संबंधी दोष !
साहित्यधर्मिता या रचनाधर्मिता तथा उनके रचनाकारों व साहित्यकारों की कथनी और करनी में भेद नहीं होना चाहिए ! कोई अपनी डिग्री को ‘शो’ कर सकते हैं, तो कोई अपनी प्रतिभा का ‘स्लाइड’ क्यों नहीं चला सकते ! एकतरफा न्याय का सिद्धांत गलत है । सिक्के के दूसरे पहलू को दिखाने में भी गुरेज नहीं होनी चाहिए ! मैं तो कतई पीछे नहीं हटूँगा, चाहे कोई फ्रेंड रहे या नहीं ! बुरा मानो या भालो ! मैं चाहूंगा, किसी की पहचान सिर्फ़ रचना से ही नहीं हो, अपितु किसी रचनाकार की व्यक्तिगत चारित्रिक विशेषता से भी रचना-सम्मत पहचान तैयार होती है !
बताते चलूँ कि रेणुजी ‘महाकवि’ नहीं थे ! उनकी महानता आँचलिक उपन्यास और कहानियाँ में आकर सधी ! वे न तो कथासम्राट थे, न ही उपन्याससम्राट ! हाँ, हिंदी में सीमांचली भाषाओं को पिरोकर फणीश्वरनाथ रेणु ने एक अलग मार्ग को प्रशस्त किया ! यह दीगर बात है, महाप्राण निरालाजी की कविताओं को पहले-पहल प्रकाशकगण छापते नहीं थे, इस भाँति रेणु की कहानियाँ भी रिजेक्ट होती रही ! …..लेकिन ऐसा नहीं है कि रेणु और निराला से आगे कोई नहीं हुए ! किसी एक साहित्यकार पर स्थिर रहना व स्तुति करना अंधभक्ति ही कही जाएगी !
‘मैला आँचल’ छापने के लिए फणीश्वरनाथ मंडल उर्फ़ फणीश्वरनाथ रेणु ने क्या-क्या तरकीब किये ? सतीनाथ भादुड़ी की किताब की नकल का आरोप ‘मैला आँचल’ पर क्योंकर लगा ?रेणुजी के बांग्ला के महान उपन्यासकार व रवीन्द्र पुरस्कार विजेता सतीनाथ भादुड़ी के अनन्य भक्त थे, वे भी पूर्णिया प्रमंडलवासी थे। भादुड़ी जी के उपन्यासों व आलेखों को पश्चिम बंगाल के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं । कहा जाता है, उनकी नेशनल फेम रचना ‘ढोढाई चरित मानस’ से फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास ‘मैला आँचल’ प्रभावित थी ! समेली (कटिहार जिला) के साहित्यकार अनूपलाल मंडल और रेणुजी के पिताजी शिलानाथ मंडल अच्छे मित्र थे, रेणुजी उन्हें चाचा भी कहते थे तथा अनूपजी की रचनाओं से भी रेणुजी की रचनाएँ प्रभावित हैं !
जब कवि-लेखक शराबी हैं, तो इनसे भी उनके चरित्र-निर्धारण भी होते हैं, इनसे व्यक्तित्व के साथ ‘कृतित्व’ भी निर्धारित होती है ! रेणुजी के बारे में लेखक भोला पंडित ‘प्रणयी’ के संस्मरण पढ़िये, जो दो दशक पूर्व ‘भागीरथी’ में प्रकाशित हुई थी । अगर पत्नी और संतान रहने के बावजूद पति के अफ़ेयर दूसरी महिला के साथ हो, तो आप क्या कहेंगे ? सिर्फ़ रचना में ही उच्च दर्शन और चरित्र व व्यवहार में विलासीपना भोजपुरी सिनेमा के द्विअर्थी गीतों की तरह है, जो कथनी और करनी को समत्व-भाव लिए स्थापित नहीं करते हैं ! रेणुजी न केवल पीते थे, अपितु टी.बी. संक्रमण से इलाज के क्रम में पीएमसीएच की सिस्टर (नर्स) के साथ उनकी अफ़ेयर रहे, इस अफ़ेयर को उन्होंने शादी में तब्दील किये यानी लतिका जी को तीसरी पत्नी बनाकर ! फणीश्वरनाथ रेणु भी चरित्र व आचरण से साफ-सुथरे नहीं थे ! रेणुजी पर यह टिप्पणी निन्दन के विन्यस्त: नहीं, अपितु यथार्थ को लेकर है ! बिहार में अभी शराब बंद है और वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में रेणुजी की इस गलत हॉबी का मैं पैरोकार नहीं हो सकता !
4 मार्च 2020 को आँचलिक कथाकार, उपन्यासकार और रिपोर्ताज़कार फणीश्वरनाथ रेणु की जन्म-शताब्दी मनाई गई । ध्यातव्य है, रेणु ही नहीं, प्रेमचंद भी आँचलिक कथाकार थे ! चूँकि प्राय: रचनाकारों ने किसी न किसी अंचल की कथा को ही रचे ! रेणुजी का जन्म पूर्णिया प्रमंडल में 1921 को हुई थी, किंतु कटिहार जिले के हसनगंज प्रखंड में उनकी पहली और दूसरी शादी हुई थी, तीसरी तो ‘लतिका’ जी से । प्रथम पत्नी से बेटी कविता का ससुराल भी हसनगंज है, तो रेणुजी की बहन की शादी भी हसनगंज में हुई है। दरअसल, ‘मैला आँचल’ में उल्लिखित ‘मेरीगंज’ तो हसनगंज क्षेत्र ही है, न कि अभी के अररिया या पूर्णिया क्षेत्र। रेणु जी आँचलिकता में कुछ अधिक ही भींगे थे, सिर्फ़ अंचल नहीं, अपितु भाषाई अंदाज़ में भी ! ‘मैला आँचल’ में उल्लिखित ‘मेरीगंज’ तो हसनगंज क्षेत्र ही है । डॉ. प्रशांत हसनगंज क्षेत्र में ही नियुक्त हुए थे, तो कमली का जुड़ाव भी यहीं से है ! ‘मैला आँचल’ उपन्यास हिंदी का कब्रगाह है, क्योंकि यहाँ सिर्फ़ बकैत हिंदी है ! अंगिका, बांग्ला, नेपाली, थेथरई अंग्रेजी, सुरजापुरी इत्यादि आँचलिक भाषायुक्त इस उपन्यास में ‘हिंदी’ को सिर्फ़ ‘रीढ़’ भर छोड़े हैं और रीढ़ नहीं रहने पर भी ‘प्राणी’ जीवित रह सकते हैं !
क्या रेणु नास्तिक थे ? ….किन्तु वे शिवभक्त थे ! कुछ लोगों ने यह बताए थे कि वे गंजेड़ी भी थे ! शराब खूब पीते थे, जिनके कारण उन्हें टी.बी. हो गया था और इस बीमारी से ही उनकी मौत हो गयी थी ! प्रशंसक कहेंगे, लेखक तो पीते ही हैं ! अगर चरित्र भी कोई चीज है, तो ऐसे ‘नशेड़ी’ लेखकों को आदर्श कैसे मानूँ ? यह प्रश्न यूँ नहीं है, अपितु लेखकों को भी कथनी और करनी में भी साम्यता रखनी पड़ेगी ! तीन-तीन शादियाँ यह विलासिता तो है ही, प्रेम से इतर कुटिल ‘वासना’ भी है ! फिर भी कोई कहेंगे, फलाँ आदर्श लेखक हैं, आदर्श गायक हैं या आदर्श गीतकार हैं इत्यादि-इत्यादि !
महानता तभी है, जब कोई सार्वजनिक हो जाय, किन्तु व्यक्तिनिष्ठता में शालीन से बाहर निकल पाए । व्यक्ति की महानता तो उनकी चारित्रिक सीढ़ी से ही आगे बढ़ पाती है ! किसी रचनाकारों को सिर्फ़ साहित्यिक दृष्टिकोण से ही परिभाषित न कीजिए, अपितु उसे चरित्र के खाँचे में भी पैठाइये और इसपर किसी को गुरेज़ नहीं होनी चाहिए । सिर्फ़ रेणु ही नहीं, राजेन्द्र यादव ‘सिगार’, कमलेश्वर ‘सिगरेट’, मुक्तिबोध ‘बीड़ी’, खुशवंत सिंह ‘शराब’ इत्यादि नशाओं के रसिया रहे और तो और वर्त्तमान में कई लेखक खैनी खाते हैं ! सआदत हसन मंटो, खुशवंत सिंह, राजेन्द्र यादव इत्यादि महानतम कलमकार भी पत्नी से इतर औरतों के प्रति आसक्त रहे हैं, यह बातें उनके आत्मकथ्य, साक्षात्कार, उनकी रचनाओं और उनके अंतेवासियों के संस्मरण से छन कर ही लोकोक्ति बन पाए हैं!