लघुकथा : इज्जत
आपात की घड़ी में सभी को सामाजिक कार्य करते देख सेठ भोलाराम को भी इच्छा हुई समाज सेवा करने की. मन ही मन फायदा- नुकसान की गणना करते हुए समाज के दो दर्जन लोगों की एक लिस्ट बनाई और अपने मित्र रग्घू को साथ ले चल पड़े समाज सेवा के लिए. एक-एक का दरवाजा खटखटाते, लिफाफा देते और रग्घू से कहते की फोटो खींचता जा. सारा लिफाफा बांट चुके सेठ भोलाराम जल्द से जल्द घर भी लौटना चाहते थे. सारे अखबार और मीडिया में समाचार और फोटो जो देना था. नहीं तो दान का क्या फायदा? समाचार बना सबसे पहले फेसबुक, व्हाट्सएप और व्हाट्सएप ग्रुप में डाल दिया. डालते ही कमेंटस भी आने शुरू हो गए. दूसरे दिन अखबार में बड़े बड़े अक्षरों में छपा था, दानी सेठ भोलाराम ने अपनी एक महीने की कमाई जरूरतमंदों में बांट दी. वह बार-बार अखबार को देखते, पढ़ते, खुश होते और लोगों को दिखाते. की तभी उनके दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजे पर वही गरीब चाय वाला खड़ा था. जिसकी तस्वीर आज के अखबारों की सुर्खियां बनी थी. भोलाराम बोले कि अरे तुमने आज का अखबार देखा है? आज तो सारे अखबार में तुम्ही छाए हुए हो. वह कुछ बोला नहीं, उसने एक बंद लिफाफा सेठ भोला राम को दिया और चुपचाप वापस लौट गया. बंद लिफाफे में दो हज़ार रूपये और एक छोटे से कागज में लिखा था, कि हम गरीबों की भी इज्जत होती है साहेब. आपने तो………
— आलोक चोपड़ा