लघुकथा

लघुकथा : बोहनी

लॉक डॉन की बंदी के कारण आई मंदी ने सभी गरीबों की कमर तोड़ कर रख दी. ऐसे ही मंदी की मार झेल रहे चित्रकार तनवीर पर एक और आफत आ गई. उसके गोतिया ने उसे एक पारिवारिक केस में झूठा फंसा दिया. एक तो दो जून की रोटी पर आफत, घर में बूढ़ी अम्मा बीमार, दूसरे केस की मानसिक उलझन. समझ में नहीं आ रहा था, की इस परेशानी से कैसे छुटकारा मिले. तभी तनवीर के मित्र ने याद दिलाया कि तुम्हारा अधिवक्ता मित्र कपूर साहब किस दिन काम आएगा? तुमने उसका बहुत सारा काम मुफ्त में ही किया है. वह तुम्हारी इस विपत्ति में जरूर मदद करेगा. और अभी तो केवल सलाह लेनी है. दूसरे दिन तनवीर सुबह 8:00 बजे, अपने अधिवक्ता मित्र कपूर साहेब के निवास पर पहुंच गया. वकील साहब ने आव-भगत और आदर के साथ बैठाया और सलाह भी दी.जब चित्रकार तनवीर लौटने को उठा, तो वकील साहब ने कहा कि अरे सुबह-सुबह का वक्त है मेरी बोहनी तो करवा दीजिए चित्रकार साहेब. तनवीर का तो, काटो तो खून नहीं. लेकिन स्वाभिमानी चित्रकार तनवीर ने बीमार अम्मा की दवा के लिए रखे पांच सौ रूपये से उनकी बोहनी करवा दी. और चुपचाप मन में सैकड़ों प्रश्न लिए भारी मन के साथ दोस्ती की दुहाई देते हुए बाहर निकल गया…

— आलोक चोपड़ा

आलोक चोपड़ा

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