शिव सरिस नृत्य करत रहत
शिव सरिस नृत्य करत रहत, निर्भय योगी;
सद्-विप्र सहज जगत फुरत, पल पल भोगी !
भव प्रीति लखत नयन मेलि, मर्मर सुर फुर;
प्राणन की बेलि प्रणति ढ़ालि, भाव वाण त्वर !
तारक कृपाण कर फुहारि, ताण्डव करवत;
गल मुण्ड माल व्याघ्र खाल, नागमणि लसत !
ज्वाला के जाल सर्प राज, शहमत रहवत;
गति त्रिशूलन की त्रास हरत, तरजत अणु प्रण !
प्रिय सृष्ट सृष्टि धार लखत, गति रति त्यागी;
माणिक्य बने ‘मधु’ हैं फिरत, उर ते विरागी !
✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’