कटिहार जिला एकसाथ बहुविध आयाम समेटे हैं
कटिहार जिला भारत के ऐसे जिलों में है, जो एकसाथ बहुविध आयाम समेटे हैं। कटिहार ज़िला प्राकृतिक भव्यता लिए है और गंगा, कोसी, महानंदा इत्यादि नदियाँ मिल इसे संगम क्षेत्र भी बनाती है। कुछ क्षण के लिए इन नदियों को अगर सागर मान ली जाय, तो कटिहार का भूखंड प्रायद्वीप रूप ले लेता है। प्राकृतिक भव्यता के साथ -साथ इसे विरासत में प्राकृतिक तिक्तता भी मिली है, बाढ़ आदि विपदा इसी तिक्तता की ओर इंगित करता है। यह जिला बिहार राज्य में हैं, जिनकी सीमा प. बंगाल, झारखंड और नेपाल के तराई भारतीय क्षेत्र ‘सीमांचल’ से मिलती है।
कटिहार ज़िला में प्राकृतिक और मानवीय साहस लिए कई उदाहरण अद्यतन चिरनीत हैं, जैसे- महाभारत -कथान्तर्गत अज्ञातवास की घटना, पीर जीतनशाह की मज़ार, श्रीकृष्ण विहारस्थली मनिहारी, संन्यासी विद्रोह, नवाब शौक़तजंग का किला -भग्नावशेष, नवाब सिराजुद्दोला -लार्ड क्लाइव के मध्य प्लासी युद्ध की पटकथा, गोरखपुर का मनोकामना शिवमंदिर इत्यादि सहित कई और भी हैं, जो भव्यता के साथ अद्भुत मानवीय -कथा लिए है। सत्यश:, ऐसी परिघटना कटिहार ज़िला को वृहद संग्रहालय और अभिलेखागार बनाता है। आइये, ज़िले के कुछ अप्रतिम बिम्बों से भी अवगत होते हैं, यथा-
●●महर्षि मेंहीं और महर्षि संतसेवी की कर्मभूमि
लगभग 10 करोड़ आबादी को प्रभावित कर रहे महान संत महर्षि मेंही और उनके फैलाये संतमत-सत्संग उनके ब्रह्मलीन (निधन) के 32 वां वर्ष भी आज बिहार, झारखंड और नेपाल में जिस भाँति से फल-फूल रहे हैं, उनमें संत मेंहीं के योगदान के साथ-साथ बाद के वर्षों में उनके शिष्यों में महर्षि संतसेवी, आचार्य शाही स्वामी, आचार्य हरिनंदन बाबा, श्री दलबहादुर दास इत्यादि के अविस्मरणीय योगदान भी समादृत हैं। बिहार के मधेपुरा जिले में 1885 के वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को जन्म, पूर्णिया जिला स्कूल में पढ़ाई, तो अपने वर्गमित्र श्रद्धेय मधुसूदन पॉल ‘पटवारी’ के साथ मुरादाबाद (उ.प्र.) के संत बाबा देवी साहब से दीक्षित हो रामानुग्रहलाल से ‘मेंहीं’ बन वे कटिहार ज़िला के नवाबगंज और मनिहारी को कर्मभूमि बनाए। उनके अनन्य शिष्य महर्षि संतसेवी की कर्मभूमि भी मनिहारी रहे, जहाँ वे सद्गुरु की सेवा के साथ -साथ बच्चों को पढ़ाया भी करते थे। ‘सब संतन्ह की बड़ी बलिहारी’ केन्द्रित सब संतों के मत ‘संतमत-सत्संग’ का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार कर लोगों में ‘झूठ,चोरी,नशा,हिंसा,व्यभिचार तजना चाहिए’ का अलख जगाये। फिर नादानुसंधान, सुरत-शब्द-योग और ध्यानयोग-साधना कर कुप्पाघाट (भागलपुर) में पूर्णज्ञान-प्राप्त किए। कई तुलनाओं के आधार पर महर्षि मेंहीं को महात्मा बुद्ध का अवतार भी माना जाता है। आठ जून 1986 को महापरिनिर्वाण (मृत्यु) प्राप्त किये। महर्षि जी के उल्लेखनीय आध्यात्मिक-पुस्तकों में ‘सत्संग-योग’ की चर्चा चहुँओर है, यह चार भागों में है। इसे भौतिकवादी व्यक्तियों को भी पढ़ना चाहिए।
●●’हाटे -बजारे’ के प्रणेता पद्मभूषण ‘बनफूल’ की जन्मभूमि
‘भुवन शोम’, ‘हाटे बजारे’ आदि राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त बांग्ला उपन्यासों के लेखक डॉ. बलायचंद्र मुखोपाध्याय ‘बनफूल’ की जन्मभूमि कटिहार जिले के मनिहारी नगर पंचायत में है। वे पेशे से चिकित्सक थे, कभी मुर्शिदाबाद, भागलपुर और अंतिम रूप से कोलकाता बस गए। वे काफी सम्मानित व्यक्ति थे, उन्हें विश्व भारती शांति निकेतन का ‘रवींद्र पुरस्कार’ समेत भारत सरकार से ‘पद्म भूषण’ भी प्राप्त हुए थे। ‘हाटे बजारे एक्सप्रेस’ ट्रेन का नामकरण उन्हीं के उपन्यास के नाम पर है, जो मनिहारी हाट से कलकत्ता बाज़ार तक की कहानी लिए है। मनिहारी में उनका घर उसी रूप में अब भी है, जिसे छोड़ वो कभी कोलकाता जा बसे थे। उनके सगे भतीजे मुकुल दा नियमित रूप से यहाँ रहते हैं, लेकिन अब अस्वस्थता के कारण प्रायशः कोलकाता ही रह रहे हैं। अभी उनका घर व्याख्याता श्री आशीष कुमार सिंह जी के देखरेख में है, वे उदास हो अक्सर कहा करते हैं- “मनिहारी के बुजुर्गजन ही उन्हें जान रहे हैं, 90 फीसदी युवा ‘बनफूल’ को नहीं जानते हैं। कटिहार ज़िला के एकमात्र ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित ऐसे महापुरुष को तिरस्कृत नहीं करना चाहिए।”
●●देश के कम उम्र के शहीद-सेनानी में ‘ध्रुव कुंडू’ का अमर स्थान
देश के स्वाधीनता संग्राम में कम उम्र में शहीद होने वालों में कटिहार के ध्रुव कुंडू भी थे, उस समय वे 13 वर्ष के थे। तारीख 11 अगस्त 1942 को क्रांतिकारियों ने कटिहार रजिस्ट्री ऑफिस में आग लगाकर सभी कागजात जला दिए और उसके बाद मुंसिफ कोर्ट को निशाने पर लिये। क्रांतिकारियों द्वारा कटिहार नगर थाने (तब नाम अलग हो) पर तिरंगा फहराये गए थे और फहराने के दौरान 13 वर्षीय ध्रुव कुंडू के जांघ में अंग्रेजों की गोली लगी और तिरंगे की आन-बान-शान के साथ वे शहीद हो गए, लेकिन देश के सबसे कम उम्र के शहीद स्वतंत्रता सेनानियों के अमर पंगत में शरीक हो गए। दरअसल, ‘शहीद चौक’ उन्हीं के कारण है। उनकी याद में उनके नाम पर उनके प्रिय कटिहार शहर में एक संग्रहालय अवश्य बनाया जाना चाहिए, ताकि उनकी यादों को सँजो व ताजा रखकर युवाओं के बीच प्रेरणा संचरित हो सके !
●●बिहार के प्रेमचंद ‘अनूपलाल मंडल’
अनूपलाल मंडल समेली से थे, उनका घर आज भी ‘साहित्यकार सदन’ के रूप में ख्यात है। अनूपजी ‘बिहार राष्ट्रभाषा परिषद’ में प्रकाशन अधिकारी भी थे। बाल विवाह और दहेज कुप्रथा से मुक्ति पर इनके कई उपन्यास हैं, जिनपर कई फ़िल्में बनी हैं। यह अपने क्षेत्र के लिए गौरव की बात है। कभी मनिहारी के ‘बनफूल’ पर डाक-टिकट जारी हुई थी। इसीतरह बिहार के प्रेमचंद कहा जाने वाले कटिहार के अनूपलाल मंडल पर भी डाक-टिकट जारी होने चाहिए।
●●’मैला आँचल’ के चलित्तर कर्मकार उर्फ़ नक्षत्र मालाकार
हालांकि आंचलिक शब्दों का प्रयोग रामवृक्ष बेनीपुरी, शिवपूजन सहाय, शैलेश मटियानी, हिमांशु जोशी जैसे साहित्यकार ने भी किये हैं, किन्तु बिहार के अररिया जिलेवासी फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ ने ‘मैला आँचल’ में जिस भाँति से मूल हिंदी के साथ-साथ अंगिका, मैथिली, बांग्ला और मधेसी भाषा को पिरोया है, वो विश्व इतिहास में अनोखा है। आज आस्ट्रेलिया के एक यूनिवर्सिटी में ‘मैला आँचल’ पढ़ाया जाता है। फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ कटिहार ज़िले के क्रांतिकारी सेनानी नक्षत्र मालाकार से काफी प्रभावित थे। ‘मैला आँचल’ में चलित्तर कर्मकार ही नक्षत्र मालाकार है। मालाकार जी बरारी से थे, जिसे बिहार का ‘रोबिनहुड’ भी कहा जाता रहा है। यह अपने क्षेत्र के लिए गौरव की बात है।
●●वर्ल्ड रिकॉर्ड्स धारक और आरटीआई के ध्वजवाहक हैं यहाँ
‘बिहार शताब्दी दिवस’ (22 मार्च 2012) पर पटना में समाचार -पत्र ‘हिंदुस्तान’ की ओर आयोजित समागम में बिहार -शताब्दी के 100 नायकों में एकमात्र नायक ‘सदानंद पॉल’ को, जिन्होंने सूचना का अधिकार (RTI) के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियाँ हासिल करने पर बिहार के माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीशकुमार ने सम्मानित किया। आरटीआई से आवेदन प्रेषण और सूचना प्राप्ति (जिनकी संख्या 22,000 से ऊपर है) में देशभर में सदानंद पॉल का स्थान अव्वल है। दैनिक जागरण ने ‘आरटीआई के ध्वजवाहक’, तो प्रभात खबर और दैनिक भास्कर ने इनके परिवार को रिकॉर्डों का परिवार कहा है। माननीय श्री अरविंद केजरीवाल (मुख्यमंत्री, दिल्ली) से पुरस्कृत श्री पॉल के पास आरटीआई से इतर भी कई उपलब्धियाँ हैं। ‘मेकिंग इंडिया ऑनलाइन’ ने इन्हें ‘इनसाइक्लोपीडिया’ कहा है। ‘मैसेंजर ऑफ आर्ट’ वेबसाइट ने इनके द्वारा रचित ‘कटिहार गान’ को देश के सभी जिलों के गानों में अव्वल पाया। गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड्स, लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स, इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स, तेलुगु बुक ऑफ रिकार्ड्स, रियल वर्ल्ड रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकार्ड्स, स्टार वर्ल्ड रिकॉर्ड्स इत्यादि ने सदानंद पॉल के रिकार्ड्स को शामिल किया है। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार से फेलोशिप होल्डर और कविता क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार सहित सैकड़ों पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता सदानंद पॉल पेशे से हिंदी व्याख्याता और मनिहारी के नवाबगंज निवासी हैं। संप्रति, साहित्य और गणितीय शोध में संलग्न हैं।
●●अपनी भव्यता के लिए मशहूर ‘नवाबगंज-ठाकुरबाड़ी’
कटिहार के मनिहारी अंतर्गत नवाबगंज ग्राम को यूँ तो बंगाल के नवाब सिराज़ुद्दौला के मौसेरे भाई और खुद पूर्णिया स्टेट के नवाब शौकतजंग ने बसाया था, किन्तु उनके साक्ष्य प्रतीक उनके किला की ईंटों से बना हाईस्कूल भी ऐतिहासिक तो हुआ, तथापि आज़ादी के पूर्व ही नींव लिए और इन सालों से अपनी ही भव्यता को चिढ़ाती ‘श्री श्री 108 राधाकृष्ण ठाकुरबाड़ी मंदिर’ तो श्री श्री राधा और श्री कृष्ण के युगल-प्रतिमा लिए है, परंतु मंदिर की नक़्क़ाशी, उत्तुंग शिखर पर रक्षार्थ बाघ-द्वय, पत्थर के फूल-पत्ते और उनमें अबरख की चिनाई, फिर बहुरंगी स्तम्भ, संगमरमरी क्लप इत्यादि लिए यूनानी-ग्रीक कला की याद दिला देते हैं। कभी यहाँ नेपाल, भूटान और बर्मा तक से लोग आकर इस भव्यता का अवलोकन करते थे। इस ठाकुरबाड़ी के प्रांगण में शिवालय, माँ पार्वती, दुर्गा, सरस्वती और प्रांगण से बाहर आते ही सबके रक्षार्थ पवनपुत्रदेव भी हैं। मंदिर की स्थापना में ग्रामवासी सहित खासकर भूदाता राश चंद्रावती देवी और उनके पति लहरू सिंह की महती भूमिका रहे हैं, तथापि रायबहादुर हेमचन्द्र राय की संरक्षणीय भूमिका भी रही। सम्प्रति, ‘ठाकुरबाड़ी’ को और भी दर्शनीय बनाये जाने की आवश्यकता है।
●●पक्षी कम, विहार ज्यादा : चर्चित ‘गोगाबिल पक्षीविहार’
सम्पूर्ण बिहार में आधिकारिक रूप से सिर्फ दो पक्षी-विहार हैं, एक बेगूसराय में काबर झील और दूसरा कटिहार के मनिहारी अनुमंडल में ‘गोगाबिल पक्षी-विहार’, किन्तु अब वहाँ गोखुर झील के सिवाय देखने को कुछ नहीं ! सिर्फ़ पिकनिक के लिए सैर -सपाटे भर ! दो दशक पहले अंतरराष्ट्रीय सुर्ख़ियों में आये इस पक्षी-विहार में जाड़े के मौसम में रूस, यूक्रेन, बेलारूस, उज़्बेकिस्तान समेत यूरोप के कई देशों से हजारों की संख्या में रंग-बिरंगें प्रवासी पक्षियाँ नवम्बर से लेकर फ़रवरी तक जल-विहार और जल-किलोलियाँ करती थीं, परंतु इस पक्षी-विहार में चोरी छिपे शिकारियों और मछुआरों द्वारा इन पक्षियों को मारकर आहार बनाये जाने के कारण इधर के कई वर्षों में विदेशी पक्षियों ने यहाँ आने बंद कर दिए हैं। अब विदेशी पक्षी नगण्य है यहाँ, किन्तु इसे मज़बूती से संरक्षित किया जाय, तो शीघ्र ही रंग-बिरंगे पक्षियों के जल-किल्लोल देखने को मिलेंगे ! ध्यातव्य है, इस पक्षी-विहार पर जिले के शिक्षक टी.एन. तारक और ए. के. अधीश्वर ने शोधकार्य कर Ph.D. भी प्राप्त किए हैं।