भारतीय पंचांग आधारित वर्ष का भी स्वागत हो
भारतीय पंचांग का मूलभाव विक्रमी संवत लिए है, जिनका प्रथम दिवस चैत्र कृष्ण पक्ष प्रथमा है, तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा शक संवत का प्रथम दिवस है। बांग्ला संवत में संक्रांति के हिसाब से नववर्ष मनाई जाती है, जो पोइला वैशाख कहलाता है, जो कभी 14 अप्रैल, तो कभी 15 अप्रैल को मनाई जाती है । उत्तर भारत में फसली सन संभवत: 13 अप्रैल को प्रथम दिवस के रूप में मनाई जाती है! कैलेंडर पर गणित लेखक गुणाकर मुले और सदानंद पॉल ने अनथक मेहनत कर सार्थक कार्य किए….
कोई भी बीते वर्ष ‘बेचारगी’ नहीं है, न ही हमारे पंचांग बेचारी हैं, किन्तु यह शब्द ‘बेचारगी’ मार्मिक और उदास करनेवाली है। काफी दिनों के बाद बच्चन जी के ‘मधुकलश’ याद हो आई, किन्तु ये बेचारगी क्यों ? कवि सबकुछ खोकर भी ‘बेचारा’ नहीं हो सकता ! जवाब मिठास तो नहीं था, किन्तु दिल को छू गया कि ज़िन्दगी के सभी रंग साहित्य में विभिन्न प्रकार के रसों के रूप में प्रतिबिंबित होते हैं।
इन रंगों में कभी उत्साह व उन्माद की झलक मिलती है, तो कभी निराशा व अवसाद की । बच्चन जी की रचनाओं में 1936-41 के दौर में कई जगह ऐसे करूण भाव सहज ही देखे जा सकते है । भावों की तीव्रता की स्थिति में ये स्वतः जन्म लेती है और इनके माध्यम से पीड़ा से एक हदतक मुक्ति मिल जाती है। परोपकर से बड़ा कुछ भी नहीं।
कैलेंडर की तरह जीवन में भी उदासीनता और रंग-रंगीली दोनों है ! यह सच है, पहले जीवन है, बावजूद कैलेंडर से उनकी तुलना बेमानी भी नहीं है….