मदर्स डे (10 मई)पर – मां के दोहे
मां होती करुणामयी, मां सूरज का रूप।
देती जो संतान को, सुख की मोहक धूप।।
मां ईश्वर जैसी लगे, होती पालनहार।
मां में पूरा है भरा, यह सारा संसार।।
हरदम वंदन में रहे, मां का अनुपम त्याग।
मां-महिमा गायन करें, सातों सुर औ’ राग।।
मां धरती जैसी लगे, मां होती आकाश।
मां से बढ़कर सृष्टि में, ना दूजा विश्वास।।
मां रोटी, मां नीर है, मां तो है संघर्ष।
मां खुशियां, मां चैन है, मां से ही है हर्ष।।
मां शुचिता, मां धर्म है, मां मीठा अहसास।
मां लोरी, मां गीत है, मां जीवन की आस।।
मां है ख़ुद में ताज़गी, हर लेती अवसाद।
मां है तो निज झोंपड़ी, लगती है प्रासाद।।
मां पूजा का थाल है, आलोकित इक दीप।
मां है तो ना आ सके, विपदा कोय समीप।।
मां प्रेयर, मां आरती, मां है वेद-कुरान।
मां गुरुवाणी, कीर्तन, मां गीता की आन।।
मां से ही सम्पन्नता, मां से ही उत्थान।
मां से ही संतान का, बढ़ता है सम्मान।।
— प्रो. शरद नारायण खरे