मुक्तक
मेरे अन्तर्हृदय की भावना को जान लेती है
मेरे शब्दों से पहले तू मुझे पहचान लेती है
ममता वेदना सम्वेदना की मूर्ति है तू
मेरी माँ सब हठों को तू विनय से मान लेती है
बनाकर हाथ से नवनीत तू मुझको खिला दे माँ
बिठाकर गोद में अपनी मुझे अमृत पिला दे माँ
न जाने कब कहाँ हो जाये पैदा कंस दुनिया में
थमाकर हाथ में वंशी कन्हैया तू बना दे माँ
— डाॅ शशि वल्लभ शर्मा