चुहिया माँ (लघुकथा)
खेतों में मकई न केवल पक चुका था, बल्कि खमार-खलिहान में थ्रेसिंग के लिए आ चुका था । बारिश का मौसम तो नहीं था, किन्तु 5-6 दिनों में एकाध घंटा के लिए बारिश हो ही जाती ! इसलिए किसानों को थ्रेसिंग द्वारा भुट्टा से मकई निकालने का अवसर नहीं मिल रहा था । इन्हीं कारणों के वशीभूत मज़बूत तिरपाल से भुट्टे के ढेर को कसकर बंद कर दिया गया था । इस खमार के बिल्कुल बगल में एक जीर्ण-शीर्ण मिट्टी का घर था, उनके मालिक कभी-कभार ही घर आते थे । उसी घर में एक चुहिया थोड़े वर्षों से रह रही थी और कुछ दिनों पहले ही अपनी 5 संतानों की माँ बनी थी, वो भी पहली दफ़ा । इन दूधमुंहे बच्चे के पिता चूहेराम रसिया-प्रवृत्ति के थे, चुहिया के गर्भधारण होते ही वे अपनी पूर्व प्रेमिका के पास किसी तरह नदी के उसपार के गाँव को चला गया था । अकेली चुहिया को स्वयंसहित 5 बच्चों के परवरिश की चिंता थी । जब से पास के खमार में भुट्टे को मज़बूत सुरक्षा मिली थी, तब से चुहिया रानी को खेतों में छिट-पुट बिखरी पड़ी अनाजों को ही खाकर दिनचर्या चलानी पड़ती थी । अगर प्रसूता माँ को 24 कैलोरी भोजन नहीं मिले, तो उनकी छाती से दूध कैसे चुएगी ? खेत दूर होने के कारण चुहिया को अपनी मांद पहुंचने में काफी देर हो जाती थी । इन बच्चों के कहने पर ही आज ‘मातृ दिवस’ होने के कारण अन्य दिनों से 1 घंटा पहले चुहिया अपनी मांद के मुहाने आ गयी और चुन्नू, मुन्नू, कीरतू, पिंकू, ब्रह्मु को पुकारने लगी । सभी पाँचों बाहर निकल माँ के स्तनों से दूध चटकारे लेते हुए स्नेहिल हो पीने लगे, मानों ये बच्चे एकस्वर से कह रहे हों- ‘मेरी प्यारी माँ’ और चुहिया माँ भी इस स्नेह से अभिभूत हो एक-एक कर सभी को पुचकारने लगे । इस मातृ दिवस पर चुहिया माँ की ममता पर एक बिल्ली की अचानक नज़र पड़ी, वे चुहिया के पोजीशन की तरफ कूद पड़ी । चुहिया तो किसीतरह मांद में घुसकर अपनी जान बचाई । चुहिया की पाँचों संतान तो ऐसे खतरों से अनभिज्ञ हो मातृसुख प्राप्त कर रहे थे, इन खतरों से वैसे चुहिया भी अनभिज्ञ थी, किन्तु उनमें सतर्कता उम्र के कारण अंटी पड़ी थी । ये सभी निरीह बच्चे बिल्ली की भेंट चढ़ गए । बिल्ली ने एक-एक कर सभी को दाँतों तले दबाई और अपनी सभी संतानों, जो 5 ही थे, यथा- नीतू, पीसू, नंदू, लिपू, आशू को नाम पुकार कर बुलाई तथा सभी 5 मृत चूहेशिशु को उनमें एक-एक कर बाँट दी । अब बिल्ली के ये बच्चे अपनी माँ की ममता पर अथाह गर्व व नाज़ महसूस कर कोमल व मुलायम चूहेशिशु को चटखारे लेकर बड़े मज़े से खा रहे थे, सबसे छुटकू बिल्लेकुमार आशू को आखिरकार रहा नहीं गया और डकार लेते हुए कह ही बैठा- ” ऊह ! माय स्वीटी मॉम ! वेरी वेरी हैप्पी मदर्स डे, मॉम !……”
हा हा हा हा हा हा…