माँ नहीं है.. !
अस्पताल में
पलंग पर लेटा था मैं
मेरी हालत को देख
लहू सूख गया था मां का
रोने में भी असमर्थ बैठी थी
आँसू भी सूख गये थे उसके
शून्यता में डूबी एकटक
देखती रह गयी थी
नहीं निकल पाया था एक शब्द भी
माँ के मुँह से
कितनी आशाएँ थीं उसके अंदर
मुझे लेकर
कामना करती थी मन ही मन
कि बनूँ मै बड़ा अधिकारी
जीऊँ मान – सम्मान के साथ
बहुत दूर चली गयीं अब
वे सभी आशाएँ
निराशा बैठी थी उसके अंदर
सहानुभूति के घेरे में
अपने आपको संभालना
नहीं रह गया था सामान्य
मैंने खूब मेहनत की थी
ग्रंथालय की सारी पुस्तकें पढ़ डाली थी
पढ़ते – पढ़ते सुध खो जाता,
पुस्तक में शीश छिपकार रह जाता था
फिर भी अनिश्चित भविष्य
मेरा क्या हो गया
यही सोचते एक दिन
बेहोश होकर गिर गया था
आँखें खुली तो
माँ मेरे सामने खड़ी थी
मेरी आँखों से टपकते आँसू
माँ से माफी माँगते थे
अब मैं स्वस्थ हूँ
नौकरी करता हूँ
माँ मेरे साथ नहीं है
रोता हूँ, बहुत रोता हूँ
जानता हूँ
फिर से इस दुनिया में माँ नहीं आयेगी
वह मेरे साथ कभी भी नहीं रह पायेगी
वेदना से भरे हृदय में
माँ को देखता हूँ
उनको निरंतर याद करता हूँ
मेरा बेटा पास आकर
मेरे सिर पर हाथ फेरता है
मेरी आँखों में देखकर
मेरे आँसू पोंछता है
मै अपनी मां में समाया होता हूँ।