अतृप्त भावनाएं
पलकों की नमकीन सतह
से, फिसलती हुई खारी सी
कुछ बूंदें, नकारे हुए ख़्वाबों
पर टपा टप गिर पड़ती हैं
भरसक, प्रयत्न करती हैं
वो थम जाने का, पर…
सिसकियों की दबी हुई
घुटन, हृदय में तीव्र जलन
पैदा करने लगती है, लेश
मात्र संशय नहीं इसमें कि
ये थकन सिर्फ बदन की
नहीं मन में बसी हुई उन
अधूरी ख़्वाहिशों की है
जिन्हें, पूरा करने की
जद्दोजहद उकसाती रही
उम्र भर, तपती धूप में
जलकर वो ठंडी छांव पा
लेने के लिए जिसकी ठंडक
पूर्णता का अनूठा अहसास
भर दे अंदर और सुप्त
भावनाएं, तृप्त होकर जाग
जाए फिर, सदा के लिए!
— निधि भार्गव मानवी