मुक्तक चेतना के
(1)
सदा सच्चों को रहता ईश का ही तो सहारा है
जो झूठा है,जो कपटी है,वो बंदा नित्य हारा है,
जो नैतिकता,धरम को मानता,विजय उसको ही मिलती है,
जो खो देता है ईमां को,रहे हरदम बेचारा है ।।
(2)
बुरे पल आते-जाते हैं,बुरा है इनसे घबराना
मनाना ईश को निशदिन,अहितकर होता डर जाना
है भीतर हौसला तो,बढ़ते जाना,कैसा रुक जाना,
जो ठहरा,वह गिरेगा,तब तो उसका तय है मिट जाना ।।
(3)
अंधकार में दीप जलाओ,तब ही जीत मिलेगी
औरों से तुम प्रेम बढ़ाओ,तब ही प्रीत मिलेगी
वरना भटकोगे हर क्षण तुम,जीवन मुरझाएगा,
असह्य ताप में मिले वेदना,क्योंकर शीत मिलेगी ।
— प्रो.शरद नारायण खरे