मेहनत हूं मैं
सम्हालो मुझे,
कि मैं औंधे मुंह,
चारों खाने चित्त पड़ी हूं,
बेरोजगार और बेबस..
जी हां, मेहनत हूं मैं,
मुझे आदत नहीं है निठल्ले पन की,
मेरे खुरदुरे हाथों को
सुकून की रेखाएं भाती नहीं हैं…
मेरी थकन
जब तक पसीना न लील जाए,
प्यासी रह जाती हूं
गरीबी में कैद बिलख रही हूं
ये कैसी दुर्दशा कर दी है
वक्त ने… मेरी और
मुझे अपनाने वाले
मेहनत कश लोगों की!
— निधि भार्गव मानवी