विश्वरत्न मदर टेरेसा
वे पहलीबार 1929 में भारत आई थी, उनसे पहले एग्नेस को पहले आयरलैंड के लोरेटो मुख्यालय और फिर डब्लिन भेजी गयी। यहां उसे मिशनरी के कार्यों की ट्रेनिंग मिल पाई। भारत पहुंचते ही सबसे पहले उनको दार्जिलिंग में नोविसिएट का कार्य सौंपा गया।
यहां से कोलकाता के इंटाली के सेंट मैरी स्कूल में भूगोल की टीचर बनकर उन्होंने बच्चों को पढ़ाया। इस स्कूल में वे 1929 से 1948 तक रहीं। इस दौरान कुछ समय वे इस स्कूल की अध्यक्षा भी रहीं। मदर ने 7 अक्टूबर 1950 को कोलकाता में मानवता सेवी गतिविधियों के लिए आचार्य बसु रोड पर मिशनरीज ऑफ चैरिटीज की स्थापना की और वे यहीं की रह गयी । मृत्यु के बाद उन्हें पोप द्वारा ‘संत’ की आध्यात्मिक उपाधि भी प्रदान की गई । शायर मुनव्वर राना ने मदर यानी माँ के बारे में क्या खूब कहा है-
“ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये,
दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है ।
छू नहीें सकती मौत भी आसानी से इसको,
यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है ।
यूँ तो अब उसको सुझाई नहीं देता लेकिन,
माँ अभी तक मेरे चेहरे को पढ़ा करती है ।”