व्यंग्य : नाजायज़ औलाद
इन दिनों मुझे हर व्यक्ति में कोरोना दिखता है। लगता है कोरोना ब्रह्म है जिसका वास हर जीव में है। चीनी कोरोनामय सब जग जानी। इसके सम्मान मे लोग गले नहीं मिलते। हाथ नहीं मिलाते। करत प्रनाम जोरि जुग पानी। अजीब रहस्यवाद है भाई। न ब्रह्म जीव से मिलने को व्याकुल है ना जीव ब्रह्म से। दूर से ही जय राम जी की हो जाती है।
हमारे देश में कोरोना का अवतरण एकदम से नहीं हुआ। शनै: – शनैः प्रभु ने अपने पैर पसारे। सूक्ष्म से विराट हो गये। कोरोना सेना के योद्धाओं ने इसके प्रचार-प्रसार में कोई कसर नहीं छोड़ी। कभी थूका कभी चाटा। कभी मूता तो कभी खाँसा। अपने प्रिय के प्रचार के लिए इतनी उत्कट भावना कभी देखने नहीं मिली। अंग्रेजों ने इतने उपनिवेश नहीं बनाये जितने कोरोना ने। कोरोना के राज्य क सूरज ही नहीं डूबता।
कोरोना ने मेरा मृत्यु बोध बढ़ा दिया है। लग रहा है इस असार संसार में और चंद सांसें मेरे शरीर में बची हैं। अजनबी मुझे यमदूत से लगते हैं। घर के बाहर जाओ तो पत्नी और पुत्र की आँखों में युद्ध के लिए प्रयाण करने वाले को अंतिम विदाई दिखाई देती है। सकुशल घर वापिस लौटने पर किसी युद्ध को जितने की सी अनुभूति होती है।
एक छोटे से कीटाणु ने संसार के शूरमाओं को छठी का दूध याद दिला दिया। मानव को उसकी औकात याद दिला दी। एटम बम और मिसाइल की ताकत पर नाक ऊँची करनेवालों की नाक रगड़वा दी। किसी किसी की तो कट भी गयी। घर-घर में से श्मशान वैराग्य जाग रहा है। जीवन की नश्वरता ने जीभ को चटोरा बना दिया है। जो लड़की ब्याह के पहले रोटियों की आकृति भी पृथ्वी की तरह न बनाकर विभिन्न देशों और महाद्वीपों के रूप में बनाती थीं आज वे पाकशास्त्र में निपुण गृहिणी बनकर जीवात्माओं को शांति प्रदान कर रही हैं। अधूरी प्यास लिए मर गये तो चौराहे के बरगद पर प्रेत बनकर लटकते रहेंगे यह आभास होते ही मदिरालयों के सामने धूम मच गयी। मरेंगे तो पी कर मरेंगे। क्या पता उस लोक में भी कोरोना के कारण लॉकडाऊन में मधुशालाएँ बंद हों?
कोरोना! तू पड़ोसी देश की नाजायज़ औलाद है, जिसके माल की कोई ‘गारंटी’ का नहीं होती। पर तू सारे विश्व को मरने की गारंटी बाँट रहा है। तू उस गंदी नाली का कीड़ा है जो अपने बाप का भी नहीं हुआ। विश्वासघात तेरे डी एन ए में है। जैसा बाप वैसा बेटा!
— शरद सुनेरी