कविता

पलायन का दर्द

पलायन का दर्द बड़ा दुखदायी होता है,
कहर बरपाता है आसमान, रोम रोम रोता है।
आंसू पसीने के रूप में बह निकलते है,
छाले पैरों के फुटकर ये कह निकलते है।।
लॉक डाऊन अच्छा है निर्णय देश के लिए,
भूख मजबूरी है, किन्तु काफी नही विद्वेष के लिए।।
लेकर बच्चों, बोझा निकल पड़े राहों पर,
नही इल्जाम किसी नेता, बंदोबस्त, सरकारों पर।।
नही तोड़ा कोई कानून, न कोई कांच तोड़ा है,
ना ही पत्थरों से डॉक्टरों पुलिस का सर फोड़ा है।।
मजबूरी है, लाचार है, पर देश के लिए जीते है,
ये देश के बेटे है साहब, हर संकट हंसकर झेलते है।।
सुनी पुकार जो जनसेवकों ने तो बसें चलने लगी,
ट्रेन महानगरो से बीहड़ों की और दौड़ने लगी।
राजनीति हो रही इस बेबसी पर भी,
कोई मौका भेड़िए छोड़ना नही चाहते है।
कोरोना फैलाने वालों को संरक्षण, बस सत्ता को कोसना चाहते है।।
गरीब के आंसुओं का मोल किया, यह सबकी मंजूरी था,
फिर भी बसें ट्रेनें और अधिक प्रबंध जरूरी था।।
धन्य है वे लोग जो इन्हें भोजन करा रहे,
तरसती बिलखती आंखों को रोशनी पहुँचा रहे।।
समाज इसी एकजुटता के साथ संकल्प से बड़ा होगा,
कोरोना रहे या ना रहे, देश मजबूती से खड़ा होगा।।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश