है वक्त की खूबी, कैसा भी हो गुज़र जाता है।
रखता कदम जो संभालकर, वह संवर जाता है।
आती रहें हज़ार दिक्कतें मंज़िले मक़सूद में ,
है माकूल हमदम तो, हो आसां सफ़र जाता है।
भूली बिसरी दास्तां, नहीं बनना उसको कभी भी,
यही सोचकर वह, कुछ पल के लिए ठहर जाता है।
होता हमारे ही हाथों में, इस जिंदगी का रुख,
चाहें तो बेकार या फिर बन बेहतर जाता है।
मेहनती ही अफ़साना हक़ीक़त में बदल सकता,
करने पूरे अरमान वह, नहीं दर-दर जाता है।
‘विपुला’ शिद्दत से करे गर कोई काम तो बेशक़,
कामयाबियों का उम्दा सिलसिला नज़र आता है।
— डॉ. अनिता जैन ‘विपुला’