गीतिका
तुम सदा हो प्रिये और मैं हूँ नमन ।
मानकर भी हमारा न होगा मिलन।
पल दिखा मौज मस्ती फिर सूनापन
जो मिला भी हमें हो हँस में यूँ चलन .
आज़ दुनिया दिखी साथ में हो सजन
सोचते जो खला बात में ये चलन .
हम डरी चाहतों का न होगा शगुन .
पल रहा बहम सा आग झेलता चमन.
खल रहा है आदतों बन बड़ा सा चुभन
हैं भला किस बनी सोच में ही वतन.
जान लो मोल भी तुम रहो कल यहाँ
खोजते से करो तुम शत्रु का दमन.
बन बसेरा हुआ जा रहा हर घड़ी,
दिख रहा है सुना दीप सा आज मन.
— रेखा मोहन ९/५/२०