व्यंग्य : समय की यात्रा आदमी का भ्रम
महाभारत सीरियल जब आरंभ होने को होता तब एक प्रभावी ध्वनि ध्वनित होती ” मैं समय हूँ ,, अर्थात एक अदृश्य सत्ता जिसे हम भगवान कहते हैं अपने को समय रूप में भी संसार को बतलाना चाहती हैं । ये सब रही अध्यात्म की बातें जिसे श्रेष्ठ बुद्धि संपन्न व्यक्ति ही समझ सकता है सामान्य जन की क्या विसात जो समझने की ज़ुर्रत कर सके । हाँ, पर उसके समझने का अपना दायरा होता है । आपने अनेकों को कहते सुना होगा कि ये समय तो उसका है, अपना समय तो जिंदगी में कभी रहा ही नहीं, पर कभी अपना भी समय आयेगा और किसी को ‘समय अपना है’ इस प्रकार कहते भी सुन सकते हैं जो एक अलग अंदाज़ में दूसरों पर समय की धौंस जमाता फिरता नजर आता है ।
समय उसका है, समय हमारा है,समय ठीक नहीं चल रहा, समय कभी हमारा भी होगा आदि बातें यहाँ वहाँ आम आदमी से सुनी जा सकती है पर ये क्या मुझे ये भी समझ में नहीं आ पाती, कभी-कभी जब मैं अपना विश्लेषण करता हूँ तो सबसे भिन्न पाता हूँ । फिर अपने आप से प्रश्न करता हूँ- अरे भाई, तुझे विद्वानों की (आध्यात्मिक) बातों के साथ-साथ आमजन की भी बात समझ नहीं आती तो फिर किस की बात समझ आयेगी ?
अचानक हृदय के अंतस्तल में से एक आवाज आती है अब उसे आप दंभ समझो चाहे मेरे विचार, पर हाँ , जिसे कहने का अधिकार है उसे सुनना भी चाहिए । खैर , समय को हमारा या अपना कहने वाले इंसान वर्तमान की संपन्नता/सफलता को देखते हुए अपना कहते हैं और विपन्नता/असफलता को देख उसे पराया समझने लगते हैं पर सच इससे बिल्कुल अलग है जो अपना होता है वह हर अवस्था में अपनों के साथ रहता है उसे बीच राह में छोड़ता नहीं ।
समय, हम नहीं थे तब भी था, हम हैं तब भी है, और हमारे नहीं रहने पर भी रहेगा अर्थात समय शाश्वत है, हम नहीं । अगर यूँ कहें तो समय हमारा कभी रहा ही नहीं अर्थात हम जुड़े जीवन यात्रा में इसके साथ और एक दिन छोड़ देंगे, ये क्रम चलता रहेगा । हाँ, हम ही रुक जायेंगे पर ये हमारे लिए रुकेगा नहीं, चलता रहेगा अपनी बिना रुकने वाली अनंत यात्रा पर … जो सहयात्री के लिए रुके नहीं वो कैसे हो सकता है अपना…
तो फिर अपना कौन ? जिसे भूल कर हमसब ‘समय’ को अपना होने ना होने की संज्ञा देने लगे । सच में वो ही हमारे सुख-दुःख, संपन्नता/विपंन्नता में सदैव साथ देते हैं जो ना केवल जीवन-यात्रा में वरन यात्रा के बाद भी संग नहीं छोड़ते । थोड़ा गहराई से सोचेंगे तो समझ आयेगा कि वे होते हैं इंसान के द्वारा किये गये कर्म (कार्य) जिन्हें हम ‘प्रारब्ध’ भी कहते आये हैं । जो इंसान का कभी भी साथ नहीं छोड़ते इसलिए वो उसके अपने होते हैं ना कि समय…
इसलिए हृदय की बात सुनकर मैंने भी आज से समय हमारा है, समय उसका है ये कहना छोड़ दिया ।
— व्यग्र पाण्डे