ग़ज़ल
कर शरारत मुस्कुराएगा कभी।
अश्क बनकर झिलमिलाएगा कभी।
पास आकर दूर जाएगा। कभी।
ख्वाब में आकर सताएगा कभी।
दूर से ठेंगा दिखाएगा कभी।
बात दिल की आ सुनाएगा कभी।
रूठने का है अलग अंदाज कुछ,
दूर ज़्यादा रह न पाएगा कभी।
तीरगी का दूर होना लाजिमी,
बल्ब कोई आ जलाएगा कभी।
इश्क़ का होने लगा उसपर असर,
अब नहीं नजरें चुराएगा कभी।
इक धरोहर छोड़ जाएंगे हमीद,
गीत ग़ज़लें कोई गाएगा कभी।
— हमीद कानपुरी