ग़ज़ल
पैर ढंकता हूँ तो सर नंगा हो जाता क्यों है
सुख की चादर खुदा तू छोटी बनाता क्यों है
इस एकतरफा तिजारत को निभाऊँ कब तक
भूल गया है तो मुझे याद तू आता क्यों है
गुज़र गए जो काफिले थे गुज़रने वाले
ये चिराग अब यहां जगमगाता क्यों है
अब ना लिखूँगा कभी अपने दिल की बात तुझे
खत पढ़कर मेरे औरों को सुनाता क्यों है
पलट के देखा ना इक बार जिसने जीते जी
मेरे मरने पे अब वो आँसू बहाता क्यों है
गैर के साथ मेरी कब्र पर आने वाले
जिसे दफना दिया है उसको जलाता क्यों है
— भरत मल्होत्रा