चिंता
चिंता मानव स्वभाव का अभिन्न अंग है। अधिकतर लोग अधिकांश समय चिंता से घिरे रहते हैं। भविष्य में उत्पन्न हो सकने वाली कठिनाइयों की चिंता। हमारी उर्जा का एक बड़ा भाग इसी चिंता में व्यय होता है लेकिन ये चिंता सिवाय समय की बर्बादी के और कुछ नहीं है। भविष्य का आयोजन करिए भविष्य की चिंता नहीं। क्योंकि भविष्य के आयोजन की जड़ें वर्तमान में हैं। भविष्य के भवन की नींव वर्तमान है। अगर आज हमारी नींव सुदृढ़ होगी तो भवन तो भव्य और मजबूत बनेगा ही। और अगर हमने अपना वर्तमान भविष्य की चिंता में ही व्यतीत कर दिया तो हम अपने जीवन में कुछ भी नहीं कर सकेंगे। भविष्य के लिए चिंतित व्यक्ति की दशा कुछ ऐसी है जैसे कोई बारिश आने से पहले ही छाता खोल कर बैठ जाए। बारिश हो या तेज धूप तब छाता बहुत काम का है लेकिन बिना बारिश या धूप के छाता खोल कर पकड़े रखना उर्जा के अपव्यय के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
— भरत मल्होत्रा