सामाजिक

चिंता

चिंता मानव स्वभाव का अभिन्न अंग है। अधिकतर लोग अधिकांश समय चिंता से घिरे रहते हैं। भविष्य में उत्पन्न हो सकने वाली कठिनाइयों की चिंता। हमारी उर्जा का एक बड़ा भाग इसी चिंता में व्यय होता है लेकिन ये चिंता सिवाय समय की बर्बादी के और कुछ नहीं है। भविष्य का आयोजन करिए भविष्य की चिंता नहीं। क्योंकि भविष्य के आयोजन की जड़ें वर्तमान में हैं। भविष्य के भवन की नींव वर्तमान है। अगर आज हमारी नींव सुदृढ़ होगी तो भवन तो भव्य और मजबूत बनेगा ही। और अगर हमने अपना वर्तमान भविष्य की चिंता में ही व्यतीत कर दिया तो हम अपने जीवन में कुछ भी नहीं कर सकेंगे। भविष्य के लिए चिंतित व्यक्ति की दशा कुछ ऐसी है जैसे कोई बारिश आने से पहले ही छाता खोल कर बैठ जाए। बारिश हो या तेज धूप तब छाता बहुत काम का है लेकिन बिना बारिश या धूप के छाता खोल कर पकड़े रखना उर्जा के अपव्यय के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]