ग़ज़ल
एक धब्बा है बदनुमा जाने।
एक रत्ती न जो वफा जाने।
उसका अगला क्दम नहीं मालूम,
ये वो जाने है या ख़ुदा जाने।
जल्द फँसता नहीं है लालच में,
ठीक से जो बुरा भला जाने।
अज्म लेकर चला हूं मंज़िल का,
कैसे होगा ये हौसला जाने।
कल की बातें नहीं पता कुछ भी,
बेवफा आज बेवफा जाने।
उसको रोटी कहीं से लाकर दो,
आज रोटी को वो दवा जाने।
यूँ तो है आसमान पर बादल,
हाल बारिश का बस हवा जाने।
उसकोमतलब नहीं किसी सेकुछ,
बस दुआ चाहता दुआ जाने।
नाम जिसका हमीद कोरोना,
मौत का सिर्फ फलसफा जाने।
— हमीद कानपुरी