कैसे लिख दूं अकबर महान
होकर जाग्रत है पूँछ रहा मेरे भारत का स्वाभिमान ।
बतला दे ये अम्बर अंनत, कैसे लिख दूँ अकबर महान ?
बिस्मरण अरे कैसे कर दूँ राणा की अमर कहानी को ।
हल्दीघाटी के पानी को झाला चेतक बलिदानी को ।
उन तूफानी योद्धाओँ को जो महाकाल से रुके नहीँ ,
जिनके गर्बीले मस्तक रण मेँ कटे सदा पर झुके नहीँ ।
कैसे झुठला सकता हूँ मै पावन जौहर की ज्वाला को ।
आन -बान पर न्योछावर उस शक्ति सिँह की बाला को ।
दानबीर भामा का यश जग मे दिनकर – सा दमक रहा ।
जयमल , फत्ता का रण कौशल मेरी आँखो मेँ चमक रहा ।
कैसे जाँऊ मै भूल भला, चेतक की चरण निशानी को ।
शासिका गोँण्डवाना उस – रानी दुर्गा मरदानी को ।
कैसे सह सकता हूँ बोलो उन अपमानोँ के ज्वारोँ को ।
माँ -बहन,बेटियोँ से सजते कामुक मीना बाजारोँ को ।
जब तक है शेष बची धरती जब तक सिर पर आसमान
जब तक यह भारत भास्वर है जब तक है किँच्ञत स्वाभिमान ।
हल्दीघाटी की ललकारेँ करती रहती हैँ सावधान ,
राणा प्रताप के भारत मेँ कैसे लिख दूँ अकबर महान
— सुरेन्द्र मिश्र ‘सूर्य’