कविता

कोरोना कहर

क्या दूं तुम्हें हुआ सब अंदर बाहर खाली
तन-मन सब टूट रहा गई चेहरे की लाली
भय में पूरा दिन बीते न नींद रात में आए
घर में हैं कैद सब हुई खस्ता हालत माली

सब डर में जीवन जी रहे हुई कोरोना मार
बना रहे सभी दूरियां सब ठप्प हुए व्यापार
चिंता चिता समान बस कहते लोग सयाने
पर करें क्या उनका जो बीच खड़े मझधार

बहुतों के अपने इस समय अपनों से दूर हैं
चाह कर भी मिल सकें न हुए यूं मजबूर हैं
छोड़ उन्हें सकते नहीं हैं स्व उत्पादित अंश
कोरोना कहर में फंस गए वे जो बेकसूर हैं

भरण-पोषण के लिए जिनके छोड़ा आवास
बिन साधन ही चल रहे ले मिलने की आस
बीच राह में फंसे पड़े हैं लाखों प्रवासी लोग
टूट चुके हैं भीतर से केवल ले रहे उच्छवास

धरा मिला जो धरा पर यहीं धरा रह जाएगा
खाली हाथ आया तू खाली हाथ ही जाएगा
भागता फिर रहा जीव क्यों मृग-तृष्णा पीछे
फिसले मुट्ठी से रेत ज्यों कुछ न मिल पाएगा

सुधीर मलिक

भाषा अध्यापक, शिक्षा विभाग हरियाणा... निवास स्थान :- सोनीपत ( हरियाणा ) लेखन विधा - हायकु, मुक्तक, कविता, गीतिका, गज़ल, गीत आदि... समय-समय पर साहित्यिक पत्रिकाओं जैसे - शिक्षा सारथी, समाज कल्याण पत्रिका, युवा सुघोष, आगमन- एक खूबसूरत शुरूआत, ट्रू मीडिया,जय विजय इत्यादि में रचनायें प्रकाशित...