कोई अपना सा
बुढ़े बीमार पति की आँखों में विछोह का दर्द देख कर वह सहम जाती थी । दिलोदिमाग पर चिंताओं का बसेरा बढ़ता ही जा रहा था । आजकल खुद से बहुत बातें करने लगी थी ।
कितना समझदार हो गया है मेरा मन …एक आज्ञाकारी बालक की तरह हमारी हर बात मानता है !
ज़िद तो अब वह बिल्कुल नहीं करता है । चप्पल टूट गई है , बीमार पति को छोड़कर कैसे बाहर जाऊँ ?
यह सब सोचते हुए उसने मन ही मन कहा-
“मेरा प्यारा बेटा ! मेरा सबसे आज्ञाकारी बेटा , तू शांत हो जा । एक चप्पल ही तो टूटी है, फैंसी चप्पलों को घर में पहनना शुरू कर दे ।
दिल ही दिल में शांति अब फुर्सत के पल में मन से बातें करने लगी ।
“जानते हो बेटा ; इस नश्वर संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है । पहले मैं सोचती थी , मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । वह भला कैसे अकेले अपने आप से बातें कर खुश रह सकता है ?”
लेकिन तुमने यह साबित कर दिया कि असली हमसफर तो तुम हो मेरे, अंतिम साँसों तक साथ निभाओगे ।”
“मेरे अंश मैं तुझ बिन कुछ भी नहीं । ‘तेरा प्यार है तो मुझे क्या कमी है ! अंधेरों में भी मिल रही रौशनी है”
कमरे में प्रवेश करते हुए बिटिया पूछ बैठी –
“प्यार ! रौशनी !
“माँ आप अभी-अभी किस प्यार की बातें कर रहीं थीं ?”
ऐसा लगा मानों चोरी पकड़ी गई । फिर भी मुस्कूराते हुए बोली-
“छोड़ ना बिटिया बेध्यानी में मुंह से कभी-कभी कुछ भी निकल जाता है ।”
“नहीं माँ आप बेवजह कुछ नहीं बोलती हैं ,कई दिनों से आप बाजार जाना चाहती हैं ,चली जाइये, मैं पिताजी का ध्यान रखूँगी ।”
वह मुस्कूराते हुए बोली-
“नहीं बिटिया अब बाजा़र जाने की जरूरत नहीं है। मनु मान गया है , अब उसे जरूरत नहीं है कहीं आने जाने की ।”
उषा आश्चर्य से पूछ बैठी-
“माँ पहेलियां मत बुझाइये , कौन है यह मनु ?”
“मेरा सबसे लायक भरोसेमंद बेटा वह सिर्फ मेरी ही सुनता है । वह अब मेरी हर बात मानता है , जिद्दी तो वह बिल्कुल नहीं है ।”
“माँ ! अचानक आपका बेटा या मेरा भाई कहाँ से पैदा हो गया ?”
“हाहाहा….मेरी भोली बिटिया, तुम भी मन की बात मानो , किसी अपने कि तलाश दिल से करो , कोई अपना सा अगर है तो वो है ‘मन’ सबसे सगा अंतिम सांसों तक का साथी ।”
— आरती रॉय