भारतीय गणितज्ञों के अवदानों को लेकर टीकाएँ
विज्ञान प्रगति में मेरे दो गणितीय आलेख कभी प्रकाशित हैं, पहली– ‘कुछ सोचनीय गणितीय उलझनें’ हैं, तो दूसरी– ‘वैश्विक गणित में भारतीय गणितज्ञों की स्थिति’ नामक आलेख । वैसे इसके अलावा कई पत्रिकाओं में मेरे गणितीय आलेख प्रकाशित हुई हैं। विज्ञान प्रगति, दिसम्बर 2019 में प्रकाशित श्री मिलिंद साव के गणितीय आलेख तो मेरे प्रकाशित आलेख की द्वितीय कड़ी है। आलेख में प्राय: बातें पुरानी कही गई है । हाँ, कुछ नवीन जरूर है, परंतु आलेखक ने ‘अभाज्य संख्या’ को लेकर कई भारतीय गणितज्ञों के अवदानों को नहीं बताए हैं ।
सम्पूर्ण संसार के गणितज्ञ और थोड़े-बहुत गणित के जानकार भी ‘अभाज्य संख्या’ व प्राइम नंबर्स ज्ञात करने के नाम से परेशान और आक्रान्त रहा है, इस संख्या से आतंकित रहा है । भारत ‘संख्या-सिद्धांत’ व नम्बर थ्योरी के मामले में अद्भुत जानकार देश रहा है । वैसे महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जन्म-जयंती रही, जिसने 33 वर्षीय अल्प-जीवन में ही ‘संख्याओं’ पर प्रमेय दिए, जिनके जन्मदिवस (22 दिसंबर) पर हमारा देश ‘राष्ट्रीय गणित-दिवस’ भी मनाता है । इनके नाम पर कई संस्थाएँ और पुरस्कार हैं ।
परंतु ‘अभाज्य-संख्या’ पर इनका रिसर्च अधूरा ही रहा था। बाल्यावस्था से मैंने भी संख्या-सिद्धांत पर अनथक कार्य करते आया है । इस हेतु ‘सदानंद पॉल की गणित-डायरी’ का प्रथम संस्करण मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में छपा था, तो द्वितीय संस्करण 1998 में प्रकाशित हुई थी, जिनमें Y2K समस्या के समाधान का भी जिक्र था । पाई का निकटतम मान 22/7 है, किंतु पाई के समानांतर मान 19/6 सहित फ़र्मेट के अंतिम प्रमेय की काट, नॉन कोपरेकर कांस्टेंट यानी यूनिक संख्या 2178 इत्यादि की खोज सहित हजारों प्रमेयों पर अनथक कार्य किया है । एक गणितीय प्रश्नों को ट्रिकी विधि से पहले 1600, फिर 5124 तरीके से बनाने भी शामिल हैं। वहीं अभाज्य संख्या जानने के तरीके पर 10 वर्षों से भी अधिक समय से मैं शोध-कार्य करते रहा हूँ।
भारत के अधिकाँश विश्वविद्यालयों में नम्बर थ्योरी के जानकार नहीं हैं और उच्च तकनीक वाले कंप्यूटर बिहार के किसी भी विश्वविद्यालय में नहीं हैं, अन्यथा परिणाम और भी सटीक आता ! फिर भी मेरी गणित-डायरी गणित के सामान्य से सामान्य विद्यार्थी के हित में है । तभी तो गणितीय विश्लेषण में सम, विषम और अभाज्य संख्यायें प्रमुख भूमिका में होते हैं । ये कहा जाय तो गलत नहीं होगा कि यह तीनो संख्याओं के वजूद पर ही गणित के प्रमेय आधारित हैं, तो जीरो भी खुद में एक संख्या है, इसे आदिसंख्या भी कहा जाता है।
वहीं रामानुजन ने 1729 नामक संख्या की खोज कर पूरी दुनिया में छा गए ! शायद अन्य विषयों में कमजोर रहने के कारण रामानुजन मैट्रिक पास भी नहीं कर पाए थे, जबकि आलेखक ने रामानुजन के मैट्रिक पास का जिक्र किये हैं । डॉ. गुणाकर मुले ने इस संबंध में श्रेयस्कर जानकारी दिए हैं । वहीं इस आलेख के लेखक ने यह भी गलत जानकारी दी है कि भास्कराचार्य के बाद से जिस भारतीय गणित का विकास अवरुद्ध हो गया था, उसे श्रीनिवास रामानुजन ने पुन: प्रशस्त कर दिया, किन्तु यह कहना गलत है, क्योंकि सिर्फ़ रामानुजन ने ही नहीं, अपितु हरीश चंद्रा, डी आर कापरेकर से लेकर डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह, प्रो. विनयकुमार कंठ, डॉ. बाल गंगाधर प्रसाद, डॉ. के सी सिंहा, प्रो. अजिताभ कौशल, आनंद कुमार इत्यादि सहित खुद मैंने भी भारत गणितीय अन्वेषण को महत्वपूर्ण जगह पर पहुंचाए हैं।
गणित आलेखक मिलिंद जी द्वारा शकुंतला देवी के प्रमेयों, सूत्रों व फॉर्मूलादि का जिक्र भी तो किये जाने चाहिए थे । इसके साथ ही एक आग्रह है कि विज्ञान प्रगति जैसे पत्रिकाओं में भारतीयों के प्राथमिक रिसर्च को भी प्रकाशनार्थ जगह देनी चाहिए।
अच्छा लेख
बहुत-बहुत शुक्रिया, सर….
शुभ दिवस !