ग़ज़ल
गर पियोगे शराब बे मौक़ा
नाम होगा खराब बे मौक़ा |
सोच कर बात सर्वदा करना
दुःख देता जबाब बे मौक़ा |
धैर्य की है सदा कमी उसमे
वो दिखाते हैं’ ताब बे मौक़ा |
आपसी खींच तान में होता
बीच में इन्तिखाब बे मौक़ा |
मुल्क में एक हो कडा शासक
चार क्यों हो नबाब बे मौक़ा |
चापलूसी सदा किया करते
मांग लेते खिताब बे मौक़ा |
कुछ नहीं ज्ञान, बैठना उठना
वो पहनते जुराब बे मौक़ा |
कालीपद ‘प्रसाद’