ग़ज़ल
सभी कर्म फल पीछे’ तकदीर पहले
मिले बाद में दंड, तकसीर पहले |
तबाही या’ संहार जग का करे कौन
वही जो किया सिर्फ तामीर पहले |
यहाँ जिंदगी देखना है बहुत बाकि
अभी जान लो सिर्फ तासीर पहले |
लिखूं क्या मैं’ सन्देश, परदेश में वो
रखूं ख़त में सब हाले तहरीर पहले |
विरोधी बने दोस्त, दुश्मन कहाँ है
बखेड़ा अभी छोड़, तकरीर पहले |
जहां दुश्मनी हो पडोसी बशर से
लड़ाई करो किन्तु तदबीर पहले |
पराजय नहीं जीत ही चाहिए अब
अँधेरा भी’ स्वीकार, तन्वीर पहले |
अगर हांकना हो जनाधार को, तब
नबाबी जरूरी या’ जागीर पहले |
धनी माँगते धन उसी से मुहब्बत
सिपाही को’ प्यारा है शमशीर पहले |
श
कालीपद ‘प्रसाद’