गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

ग़ज़ल

स्वतंत्र देश ने’ पुख्ता विधान पाया है
नवीन देश ने’ इक संविधान पाया है |
कठीन काम था’ इस संविधान को लिखना
तमाम दोस्त यहाँ वुद्धिमान पाया है |
गुलाम देश था’ अंग्रेज की गुलामी की
भविष्य इसका अभी शानदार पाया है |
उमंगी देश तो’ उत्कर्ष पर पहुंचा है
उड़ान के लिए’ इक आसमान पाया है |
सभी विभिन्नता’ के बावजूद हम हैं एक
तमाम आम का’ भी योगदान पाया है |
किया परास्त सभी शत्रु को चिर कर
ये भारतीय सुदृढ़ स्वाभिमान पाया है |
पड़ोस से यहाँ जो आये’ उनका’ स्वागत है
ये मेहमान भी’ इक मेज़बान पाया है |
कुछेक हैं धरा’ में खानदान पर गर्वित
नहीं हरेक बशर खानदान पाया है |
तमाम मुफलिसों’ को एक घर का’ था वादा
हरेक दीन दुखी क्या मकान पाया है ?
बगैर दोष किसी को सज़ा नहीं मिलती
अ-क्षम्य दोष है, पर प्राण दान पाया है |
कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !