कविता

पलायन

इतना यदि पंछी भी बंद रहता है
तो उड़ने का हुनर भूल सकता है
ये सोच रही हूँ खाली घर में अकेले
आज़ादी का नशा तो मस्त नशा होता है
बंद मत करो दूर रहते जी लेंगे
चेहरे पर मास्क हाथ भी नहीं छुएंगे
पढ़ लेंगे एकदूसरे की आँखों की परिभाषा
बच्चों के स्कूल कॉलेज खेलों मित्रों से जुदाई
जवानों की छूटी नौकरी मजदूरों की दुहाई
ये बढ़ती महामारी में छूत सी बेरोजगारी
बढ़ते तनाव में परिवारों की भागेदारी
तोड़ के पिंजरे ये लोगों का पलायन
मैं घर में नहीं हूँ अपने बस में नहीं हूँ
बच्चों की दबी शरारतों युवाओं की चाहतों
जवानों की उमंगों और किसानों मज़दूरो की आशाओं के संग चल रही हूँ —
चलो सड़क पर पटरी पर तपती धरती पर
तुम्हारे पाँव के और अपने मन के छालों का
नया इतिहास रच रही हूँ

— इन्द्रा रानी

इंद्रा रानी

शिक्षा – स्नातक, इतिहास संप्रति – सरकारी बैंक से सेवानिवृत, स्वतंत्र लेखन रुचि – वही सब जो आत्मसंतुष्टि से भर दे लेखन से जुड़ाव 1970 के दशक में ही हो गया था। अब तक लगभग 150 रचनाएँ सरिता गृहशोभा मुक्ता गृहलक्ष्मी वनिता हंस सखी कादंबिनी और प्रादेशिक पत्रिकाओं में छप चुकी हैं और आगे भी छपने के लिए स्वीकृत हो रही हैं । अब तक दो काव्य संग्रह और एक हाइकु संग्रह प्रकाशित । तीन सांझा काव्य-संग्रह में भागीदारी । फेसबुक में निरंतर पोस्ट लिखने के कारण , मुझे शुभचिंतकों मित्रों पाठकों से भरपूर स्नेह प्रोत्साहन आशीर्वाद मिल रहा है । मेरा तो विश्वास है सहज और सरल अभिव्यक्तियाँ ही सीधे ह्रदय से संवाद करती हैं । -इन्द्रा रानी 524 -पॉकेट -5 मयूर विहार फेज -1 दिल्ली - 110091