कहानी

अन्न के दाने

अन्न के दाने

चैत्र – महीने की शुक्लपक्ष सप्तमी के दिन सूरज की किरणें जैसे ही आकाश में फैलीं, तो सोते हुए सभी  पक्षी कलरव करते हुए पँख फैलाकर पेट भरने दानों की खोज में उड़ने लगे।  एक सफेद कबूतर दम्पति का बच्चा कल तक घौंसले में ही रहकर अपने माता-पिता द्वारा लाये दानों से अपना पेट भर रहा था। जबकि उसके पंख परिपक्व हो चुके थे और वह उड़ने की ज़िद भी कर रहा था, लेकिन उसके माता – पिता ने कोरोना संक्रमण की स्थिति को देखते हुए उसे  घौंसले से निकलने नहीं दिया। माँ ने कह दिया, बेटा –
हम पक्षी हैं मानव नहीं। हम अपनी मर्यादाएँ जानते हैं, मानव के पास डॉक्टर्स, हॉस्पिटल सब हैं, वो अपना इलाज करवा सकते हैं तो उन्हें प्रकृति के साथ मजाक करने  की आदत है। लेकिन हमें प्रकृति के साथ मिलकर रहना है। प्रकृति के विरुद्ध चलने का मतलब है खुद को मौत के मुँह में धकेलना।
बच्चा बोला- माँ तुम अब भी जटायु – सम्पाति के युग की बात कर रही हो।  अब हमें प्रकृति से ज्यादा भरोसा मनुष्यों की उदारता पर है, उसके दान पर है। आपने ही तो बताया था कि शहर में सुबह  प्रतिदिन  छत पर  हम पक्षियों के लिए मनुष्य दाना डालते हैं। पानी का प्याला रखते हैं।  इसका अर्थ तो यही हुआ न कि मानव हमारे लिए ज्यादा सहायक हैं।
माँ कुछ बोल पाती उससे पहले पिता ने बेटे को दुलारते हुए कहा मेरे प्यारे बेटे…
तू अभी दुनिया से अनजान है, तू नहीं जानता ये मानव हमारे लिये दाना नहीं डालते ..इनमें से बहुत से लोग अपने पापों को काटने के लिए हमारे लिए अन्न के दाने फैलाते हैं , इनके राहु, केतु , शनि  ग्रह जब वक्री हो जाते हैं तब इन पर भारी कष्ट पड़ता है फिर ये किसी ज्योतिष शास्त्री  के कहने पर मजबूर होकर हमारे लिए अपनी-अपनी छतों पर  रोटी के टुकड़े, अन्न के दाने रखते हैं । इन मनुष्यों के यहाँ क्वार के महीने में पन्द्रह दिनों तक कनागत में कौओं  को पकवान खिलाये जाते हैं, उनकी मान्यता है कि यह दान हमारे पूर्वजों के पेट में जाता है। तो बेटा यह मनुष्य बड़े स्वार्थी होते हैं।
ये तो खुद इतने बेरहम हैं कि इनके यहाँ काम करने वाले जो नौकर होते हैं उन्हें ये रोटी नहीं खिला सकते, उनसे जितना काम लेते हैं उतने पैसे भी नहीं देते। द्वार पर कोई भिखारी आजाए तो उसे गालियाँ देकर भगा देते हैं।
बच्चा बोला, लेकिन पिताजी आपने एक दिन बताया था कि हमारे बगल में दूसरे पेड़ पर जो शुक अंकल  रहते थे , उनको एक परिवार ने  पिंजरे में रख लिया है, उसे रोज दूध रोटी और फल खिलाते हैं।
बेटे की बात सुनकर पिता ने फिर उसे सच्चाई का सामना कराया …माँ कुछ बोलती उससे पहले पिता ने माँ को आँखों के संकेत से रोक दिया
पिता ने कहा मेरे प्यारे लाल-लोग हमें पकड़ने के लिए भी कपट का दाना डालते हैं। हमें पकड़ कर हमें भूनकर खाते हैं इसलिए दाना डालते हैं। हमने तुम्हें जो बताया शुक अंकल के बारे में ,उन्हें जाल में फंसाकर पकड़ लिया था, आज भले शुक अंकल  दूध रोटी खाते हैं लेकिन परतन्त्रता के मीठे सेव खाने से स्वतन्त्रता की निबौरी खाना अधिक स्वादिष्ट है।
पिता श्री आप  ज्यादा ही आदर्शवादी हो, सिद्धान्त से पेट नहीं भरता।  मुझे जाने दो। यह कहकर कबूतर का बच्चा नीले आकाश में हवा को चीरता हुआ उड़ गया। माँ  पीछे से कहती हुई आरही थी, बेटा रुक किसी पेड़ पर बैठ जा। शहर में कोरोना का कहर है। कोई जाल में फंसाकर कैद कर लेगा , शहर का माहौल ठीक नहीं है।
हम खेतों में जाएंगे वहाँ अभी कुछ दिन पहले फसल कटाई हुई है उहाँ बहुत दाने हैं।
बच्चा नहीं माना, वह माँ  की अवहेलना करता हुआ शहर में उड़ गया।
सफेद कबूतर का बच्चा जो आज पहली बार आकाश में निर्बाध उड़ा, अनंत आकाश में अनंत आशाओं औऱ महत्वाकांक्षाओं को लेकर उड़ता हुआ सीधे शहर में पहुँचा औऱ एक मुडेर पर बैठ गया।उसने देखा कि छत पर  कुछ अन्न के दाने फैले हुए  हैं। वो समझ गया , जिसके बारे में पिताजी ने बताया था, शहर के लोग पुण्य कमाने के लिए पक्षियों को दाना डालते हैं।
फैले हुए अन्न के दाने चावल थे, जिन्हें फैलाया  गया था। दानों के ऊपर आधी झुकी हुई टोकरी एक छोटी-सी छड़ी पर टिकी उसमें  पतली रस्सी से बंधी हुई थी,
कबूतर के बच्चे को केवल दाने दिख रहे थे उसे डलिया के जाल  का ज्ञान नहीं था।
वह उड़ा और दाने चुंगने लगा, अचानक टोकरी गिर जाती है वह कैद हो जाता है
शिकारी टोकरी उठा ही रहा था कि उसकी माँ आजाती है,
शिकारी कबूतर के बच्चे को पिंजरे में बंद कर देता है।
दिन भर कबूतर और कबूतरनी दोनों मुडेर पर बैठे अपने बेटे को देखते रहे औऱ उसकी हठधर्मिता पर माथा पीटते रहे ।
रात को जब शिकारी सो जाता है,  तब दोनों पिजरें को अपनी चोंच से ,पंजों से खोलकर अपने बेटे को आजाद करवा लेते हैं। सबेरा होते ही बच्चा अपने  माता-पिता से क्षमा मांगता है  और कहता है अब मैं सदा आपकी बात मानूँगा।
माँ चौदह दिन तक इसी चिंता  में रही कि कहीं इसे कोरोना का संक्रमण तो नहीं हुआ हो , लेकिन वह स्वस्थ था।

डॉ. शशिवल्लभ शर्मा

डॉ. शशिवल्लभ शर्मा

विभागाध्यक्ष, हिंदी अम्बाह स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, अम्बाह जिला मुरैना (मध्यप्रदेश) 476111 मोबाइल- 9826335430 ईमेल-dr.svsharma@gmail.com