कविता

एक माँ के बेटे चार

 

संवेदनाएं नहीं है
एक मां के बेटे चार

कौन देगा रोटी अब हो रहा विचार
झगड़ा हुआ रात भर बिना परिणाम
सुबह नार ने किया सब बेकार
एक मां के बेटा चार

संवेदना बची कहां
जब कोई सुनता नहीं
मां है सबकी अब लेकिन कोई चुनता नहीं
प्रलय आएगी वो सुन रहा है ऊपर वाला
समय का पहिया
तुम्हारे पास भी आएगा भैया !
बनो कितने भी बड़े धनवान
करो कोई भी व्यापार
एक मां के बेटे चार

जमीन जायदाद पर
कौन सा अधिकार
कहां गया बचपन ?
कहां गया वह अल्हड़ पन?
कहां गया वो अठखेलियाँ भरा प्यार
समाज की दुर्दशा
अब कलयुग है, घोर कलयुग!
मैं हूं दोहराता ये बात बारंबार
एक मां के बेटे चार

सवाल उठाते
सबको झूठ बताते
शब्द बाणों से
इस माँ को सताते
संवेदनाओं का मैं हूं जिज्ञासु
संभाला क्या किसी ने इस माँ का एक भी आंसू
रोते बिलखते मां-बाप देखें
क्या इस समाज का यही आधार !
एक मां के बेटे चार

याद रखना जब तुम सब जन्मे थे
कितने खुश थे यह बूढ़े मां बाप
आज जब सब दुत्कार रहे हो
लगेंगी बद्दुआएं लगेगा तुम्हें घोर पाप
इनकी आशाओं को यूं ना उखाड़ो
इनका मन मंदिर यू ना उजाड़ो
इनकी आत्मा कोसेगी
फिर कैसे चलेगा घर बार
एक मां के बेटे चार

जब यें बूढ़े होते हैं
यें बच्चे बन जाते हैं
मीलों नापने के बाद इनके
कदम थम जाते हैं
मेहनत के ज्वालामुखी जो होते थे कंधों पर
अब आकर जम जाते हैं
पलकों पर बैठाया करो इनको
जब जाकर होगा ये जीवन साकार
एक माँ के बेटे चार

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733