कविता

जिंदगी

अलग नहीं हो तुम कभी
मुझे से
न मैं हूँ कभी अलग तुम से
पारस्परिक सहयोग से
चलती है जिंदगी
अंतिम सांस तक
अकेला कोई जी नहीं सकता
सह अस्तित्व है प्रबल शक्ति।

भेद – विभेद की रचना में
अपने को अलग मानना,
अव्वल दर्जे का अहं दिखाना
अपने आप में एक छल है
भोग की लालसा में जीभ फैलाते
सत्य से दूर, भ्रम के आवरण में
जिंदगी एक झूठ है।

हम तोड़ेंगे असमानता की
ये दीवारें,
प्रहार करेंगे अन्यय, अधर्म पर
अनादि के पाखंड पर
मानव धर्म की ईजाद में
आने दें मुझसे
अंतरंग की ये हिलोरें
निकलने दें मेरे अंतरंग से
यथार्थ के अहसास,
आने दें तुझसे
अपने अंतर की वाणी
निकलने दें उस सत्य की
अभेद की भावधारा,
एक दूसरे के साथ
विचारों की गरिमा बांटते
श्रम के साथ चलेंगे हम
खिलेंगे जिंदगी के उपवन में
रंग – बिरंगे फूल
महक उठेगी सारी दुनिया
प्यार की सुगन्ध से।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।