कुण्डली/छंद

सुंदरी सवैया छंद

अपने मन की गति बांध अरे यह मांग रहा अब जीवन तेरा|
मन में धर धीर करो सब काम मिटे भव ताप न हो दुख डेरा|
जिसने गुन ली यह बात सुनो सुख कोष बढ़े नित लाभ घनेरा|
सुख की बरखा हर पीर हरे चहुँ ओर करें खुशियाँ पग फेरा |

विनती करते कर जोड़ प्रभो मत देर करो सुनलो बनवारी|
तड़पें गालियाँ सुनसान बनी महके न धरा सहमी फुलवारी |
तम सा गहरा यह रोग हुआ तम दूर करो हर लो दुशवारी|
प्रभुता तब है जब आस फले तब ही समझूँ तुमको उपकारी |

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’
लखनऊ (यू पी)

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016