सुंदरी सवैया छंद
अपने मन की गति बांध अरे यह मांग रहा अब जीवन तेरा|
मन में धर धीर करो सब काम मिटे भव ताप न हो दुख डेरा|
जिसने गुन ली यह बात सुनो सुख कोष बढ़े नित लाभ घनेरा|
सुख की बरखा हर पीर हरे चहुँ ओर करें खुशियाँ पग फेरा |
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विनती करते कर जोड़ प्रभो मत देर करो सुनलो बनवारी|
तड़पें गालियाँ सुनसान बनी महके न धरा सहमी फुलवारी |
तम सा गहरा यह रोग हुआ तम दूर करो हर लो दुशवारी|
प्रभुता तब है जब आस फले तब ही समझूँ तुमको उपकारी |
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’
लखनऊ (यू पी)