लघुकथा

दहशत

कोरोना की बढ़ती रफ्तार और उसके डर से सिर्फ मानव ही नहीं, सारा संसार आक्रांत था. वायरस तो बहुत आए, पर किसी भी वायरस का इतना विकराल रूप शायद ही किसी ने देखा हो. सारे विश्व को लपेटे में लेने वाले कोविड-19 ने सभी को भयाक्रांत कर रखा था.

कोरोना वायरस को लेकर लोगों के जहन में कई सवाल चल रहे हैं. खासकर लॉकडाउन में बंद होने के कारण यह चिंता भी सबको खा रही है कि आखिर कब तक ऐसे हालात का सामना करना पड़ेगा. भयभीत मानव भी समय का सदुपयोग करने के लिए अध्ययन में जुटा हुआ था. इसी दौरान उसने पढ़ा-

”21 मई 1935: क्वेटा शहर (अब पाकिस्तान में) भूकंप में बुरी तरह तबाह. 30 हजार से अधिक लोगों की मौत.” उससे उसे एक किस्सा याद आ गया.

नाम भले ही उसका अजेय था, लेकिन क्या वह अजेय रह सका! अजेय 21 मई 1935 के क्वेटा शहर (अब पाकिस्तान में) के भूकंप को झेल चुका था. उसके घर वालों को वह भूकंप का हल्का-सा झटका महसूस हुआ था, लेकिन वह तो पूरा हिल गया था. इसके बावजूद वह अजेय बना रहा और भूकंप-पीड़ितों की सहायता करता रहा. तब के सभी हिंदी-उर्दू-पंजाबी समाचार पत्रों ने बड़े गर्व से उसके साहस के किस्से प्रकाशित किए थे. यह क्वेटा शहर उस भीषण भूकंप में प्राय: एकदम नष्ट हो गया था, लेकिन अजेय जैसे कार्यकर्ताओं के कारण फिर उसने विकास भी कर लिया था.

इसी बीच अजेय को 1947 में भारत विभाजन का दंश भी झेलना पड़ा था. तन से भले ही वह भारत की राजधानी दिल्ली में रह रहा था, लेकिन मन तो अभी भी क्वेटा शहर में विचरण कर रहा था. वही तो उसकी मातृभूमि-जन्मभूमि रही थी न! 1955 में विकराल भूकंप के कारण क्वेटा शहर एक बार फिर हिल गया था. इस बार अजेय तो वहां था नहीं इसलिए भूकंप के झटकों से उसका तन तो नहीं हिल पाया, लेकिन मन भूकंप के झटकों की दहशत को नहीं झेल पाया और जो 1935 में नहीं हुआ, अब 1955 में हो गया था. अजेय अब अजेय नहीं रह पाया था.”

यह सब दहशत के कारण हुआ था. क्या कोरोना वायरस की दहशत भी हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी? सारा दिन कोरोना नायरस के कारण हुई मौतों, कठिनाइयों और आत्महत्याओं के समाचारों की दहशत से भयभीत हुए मानव ने विविध कार्यकलापों में खुद को व्यस्त रखने का उपक्रम करना शुरु कर दिया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “दहशत

  • लीला तिवानी

    डर के आगे जीत है. जो डर जाता है, वह बिना मौत के ही मर जाता है. जो निर्भय रहकर अपनी सकारात्मक ऊर्जा को संचित करता है, वह मुसीबत के भंवर से खुद को बचाकर ले जाता है. इसी डर के कारण अनेक लोगों ने आत्महत्या तक कर ली है. डर को डराएं, कोरोना को हराएं.

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