सांसें जपती नाम उसी का
स्वारथ का संसार यहां संबंधी कौन किसी का।
रिश्ते-नाते, परिजन, परिचित बनते अंग इसी का।
पर होता कोई जिसकी यादों से मन महक उठे,
मलयज सांसें जपतीं नाम सदा हो मौन उसी का।।
घोर उदासी में भी खुशियों के स्वर मिल जाते हैं।
फूलों के पथ पर भी चल पांव कभी छिल जाते हैं।
जीवन में कभी कभी अनजाने लोगों से मिलकर,
तन-मन है महक उठे,उर में उपवन खिल जाते हैं।
सांसो में रस घोलती हवा आती जो छू तन तेरे।
खिले मुरझाई कली छाये प्रीति के बादल घनेरे।
अर्चना आराधना में अर्पित सब संपदा प्राण की,
प्रेम की पूजा में समर्पित शुभ सुवासित सुमन मेरे।
— प्रमोद दीक्षित ‘मलय’