महान शिक्षाविद मधुसूदन पॉल पटवारी
मनिहारी में गंगा के उत्तर तराई क्षेत्र, दक्षिणी पश्चिमी महानंदा के कछार और कोसी छाड़न के पूर्वी हिस्सा वृहदाकार लिए था, जो कि पुरैनिया मंडी से गोबरा माणिकचक मंडी के लिए, फिर नेपाल से सीधे ढाका जानेवाली सड़क पर पड़ता था. यह जगह सुनसान था, जिनके कारण व्यापारियों के साथ डाकेजनी हो जाया करते थे, दूसरी तरफ सामरिक महत्व का क्षेत्र होने के कारण मुग़ल साम्राज्य ने तोपों के रखरखाव, एतदर्थ गोला बारूद रखने या यहाँ तैयार करवाते थे. यह जगह उनदिनों गोलक बारकगंज कहलाता था.
व्यापारियों और गोला बारूदों को लूट से बचाने के लिए तोपची और सैनिकों के प्लाटून रहते थे, जो कई जातियों में से थे. कालान्तर में इन सैनिकों के परिवार यहाँ चनवा खुदना, प्लासी आदि से आकर बस गए. गोलक बारकगंज को नवाबगंज के रूप में तब्दील करने तथा सैनिक पोस्ट मनिहारी बनाने का श्रेय पुरैनिया के नवाब शौकतजंग को जाता है. इन्हीं तोपची में पॉलवंश के तिलकधारी हुए, जिनके पुत्र रामदयाल और रामदयाल के यायावरी पुत्र झारखंडी हुए. कीर्तन गुरु झारखंडी के कनिष्ठ पुत्र मधुसूदन का जन्म 31 दिसंबर 1879 ई. को इसी नवाबगंज में हुआ, जो अभी बिहार प्रांत के कटिहार जिले में है.
कलकत्ता से स्नातक होने के बाद पहले बांग्ला भाषा के कई शब्दों का सृजन किया, फिर खड़ी बोली को लिए कचहरी भाषा की लिपि कैथी में भारती भाषा के लिए न केवल शब्दनिर्माण किए, अपितु काशी नागरी प्रचारिणी सभा को अमूल्य सुझाव भी भेजे, उनका यह कहना था कि भारती के सामान्य शब्दों को बोलने क्रम में मुख गोलकर बोलने से बांग्ला भाषा का उच्चारण हो जाता है, यही भारती कालान्तर में हिंदी भाषा बनी. अँग्रेजी के शब्दों की साम्यता को लेकर ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी के पहला संस्करण की पहली प्रति इन्हें उपलब्ध कराया गया, जो आज भी इनके वंशजों के पास है.
पुरैनिया (पूर्णिया, बिहार) में स्कूली शिक्षा के क्रम में रामानुग्रह लाल इनके वर्गमित्र थे, जो बाद में संतमत सत्संग के आचार्य महर्षि मेंहीं के सुनाम से जाने गए. जब महर्षि जी ने संतमत सिद्धांत लिखा, तब उनमें शब्दों के चयन और प्रूफ हेतु इन्हीं को दिए. संतमत के प्रथम अभिनन्दन ग्रन्थ में स्व. मधुसूदन की अंश चर्चा है. कटिहार विहंगम नामक सरकारी स्मारिका में इनपर पूर्ण चर्चा है. हिन्दू धर्म की सनातनी परम्परा पर इनके कई भाषण हुए हैं. बंगाली देशभक्तों से काफी प्रभावित थे. लोग इन्हें शाकाहारी राष्ट्रवादी के नाम से भी जानते हैं. बंग भंग, बर्मा संकट और बिहार भूकंप के समय इन्हें पीड़ित देखा जा सकता था.
इनकी रचनाएँ यत्र तत्र बिखरे पड़े हैं, जिन्हें सहेजने का कार्य इनके प्रपौत्र श्री सदानंद पॉल कर रहे है. श्रीमान् मधुसूदन की विद्वता से प्रभावित होकर यहाँ के एक प्रतिष्ठित स्टेट ने इन्हें पटवारी व तहसीलदार नियुक्त किया था, जो उनके आजीविकोपार्जन का साधन रहा. परंतु 58 वर्ष की आयु में ही इनका देहावसान 1937 में जन्मतिथिवाले तारीख को हुआ.