प्रायश्चित (कहानी)
रोहिणी कॉलेज से लौटी तो देखा आज सभी बहुत व्यस्त दिखाई दे रहे थे। घर को बड़े करीने से सजाया गया था। टेबल क्लॉथ, पर्दे, चादर, सोफ़ा कवर, सब कुछ नया। गुलदस्ते में महकते ताज़े फूल। उसने अंदाजा लगाया कि ज़रूर कोई ख़ास मेहमान आने वाला है जिसके स्वागत के लिए इतनी सारी सजावट की गई थी। वह ये सब देख ही रही थी कि किचन से उसे भीनी महक और बर्तनों की आवाज़ सुनाई दी। वह अपने कमरे में न जाकर उसी ओर लपकी। अरे वाह, गर्मागर्म समोसे। उसने हाथ बढ़ाया ही था कि मम्मी बोल पड़ीं, “हे भगवान, कितनी बड़ी हो गई है लेकिन बचपना नहीं गया…। “कल को ससुराल जाएगी तो क्या होगा इसका, मां के मुंह से शब्दों को पकड़ते हुए उसने अधूरे वाक्य को पूरा किया। “मम्मी आपसे कितनी बार कहा है कि मुझे नहीं करनी अभी शादी-वादी और जब भी कोई मुझसे शादी करेगा उसे मेरी आदतों के साथ ही अपनाना पड़ेगा”, इठलाते हुए वह बोली और समोसा उठाकर खाना शुरू कर दिया। मां माथे पर हाथ रखते हुए बोली, “अच्छा जाओ, मुंह हाथ धोकर कोई अच्छा सा सूट पहन लो। हल्का मेकअप भी कर लेना। लड़के वाले आ रहे हैं, तुम्हें देखने के लिए। ”
रोहिणी ने गुस्सा होते हुए कहा, “अब समझ में आया इतनी साज सज्जा का कारण, मुझे हमेशा के लिए घर से बाहर निकालने की तैयारी हो रही है, अब मैं आप लोगों को बोझ जो लगने लगी हूं।” मां ने गैस की लौ धीमी की और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए समझाने लगीं, “ऐसी बात नहीं है, बेटी तो पराया धन होती है, चाहे जितना सहेज कर रखो एक न एक दिन तो उसे उसके घर भेजना ही पड़ता है। मैं भी तो आई थी तुम्हारे पापा के साथ अपने मां बाप को छोड़कर।” “वह सब तो ठीक है, लेकिन इतनी जल्दी भी क्या है? अभी तो मेरी परीक्षाएं भी बाकी है”, रोहिणी बोली। मम्मी मुस्कुराते हुए कहने लगीं, “अरे तो कौन सा वे आज ही विदाई के लिए कह रहे हैं, अभी तो बस रोके की रस्म होगी। बाकी सारे कार्यक्रम तुम्हारी परीक्षा के बाद। तुम्हारे पापा के दोस्त का बेटा है। एम पी ई बी विभाग में इंजीनियर है। एक बहन है जो एम बी बी एस कर रही है। बहुत भला परिवार है, तुम वहां बहुत खुश रहोगी। ” रोहिणी अपने कमरे में आ गई।
शाम के सात बज रहे थे। दरवाज़े की घंटी बजी। राधा (घर की नौकरानी) ने दरवाजा खोला और मेहमानों की आवभगत शुरू हो गई। स्वल्पाहार और मिलने मिलाने की औपचारिकता के बाद लड़के वालों ने रोहिणी को देखने की इच्छा व्यक्त की। छोटी बहन और मम्मी उसे ड्राइंग रूम में लेकर आईं। उसने सुर्ख लाल और हरे रंग का पटियाला सूट पहन रखा था। मेकअप के नाम पर थोड़ी सी क्रीम, हल्का पाउडर और माथे पर एक छोटी सी काले रंग की बिंदी। वह उन्हें पहली नज़र में ही भा गई। लड़के से अलग से बात करने की इच्छा पूरी करने के लिए कहा तो उसने यह कहते हुए मना कर दिया कि इसकी कोई जरूरत नहीं है उसे रोहिणी पसंद है। दो दिन बाद सगाई करने की बात तय करके वे लोग चले गए। मम्मी, पापा, बहन सभी बहुत खुश थे लेकिन रोहिणी को इस बात की कोई खुशी नहीं थी। वह चुपचाप उठकर कमरे में आ गई। मोबाइल पर एक नंबर डायल किया और बेसब्री से कॉल रिसीव होने का इंतज़ार करने लगी। घंटी गई मगर किसी ने उठाया नहीं। दोबारा कॉल किया तो आवाज़ आई, “हैलो। “कहां हो तुम? मुझे तुमसे कल सुबह ही मिलना है। पांच बजे विवेकानंद पार्क में आकर मिलो। सामने से उत्तर आया, “ठीक है, लेकिन हुआ क्या? कुछ तो बताओ।” रोहिणी ने कहा कि मिलकर बताएगी और कॉल कट कर दी। गहरी सांस लेकर वह कुछ सोचने लगी।
अगली सुबह वह रोज़ाना की तरह मॉर्निंग वॉक के लिए निकली। जब वह पार्क में पहुंची तो विवेक पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था। वह दौड़कर उससे लिपट गई और उसे अपनी सगाई तय होने की बात बताते हुए कहने लगी, “तुम्हें तो पता है न कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूं, मैं उससे शादी कैसे कर सकती हूं? प्लीज़ तुम्हीं कोई रास्ता निकालो। “तुमने अपने घर वालों को मेरे बारे में बताया?” विवेक ने पूछा। “नहीं बताया, सोचा था कि परीक्षा के बाद सबको बता दूंगी, उन्हें मनाने में टाइम लगता। तुम्हे तो पता ही है कि पापा जात पात को कितना मानते हैं। मैं क्षत्रिय तुम ब्राह्मण, इतना आसान नहीं होगा मनाना और अब तो समय भी बहुत कम है। मैं तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगी, प्लीज़ तुम्हीं कोई रास्ता निकालो!” रोहिणी ने रुआंसी होकर कहा। विवेक उसे सीने से लगाते हुए बोला, “चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा। तुम घर वालों को सब सच बता दो अगर वे नहीं माने तो हम भागकर शादी कर लेंगे।” रोहिणी ने लौटकर सभी को विवेक के बारे में बता दिया। छोटी बहन ने आश्चर्य से पूछा, वही विवेक जो कॉलेज की कैंटीन में काम करता है? दीदी, वह अच्छा लड़का नहीं है। वह नशा करता है और लड़कियों के साथ छेड़खानी के कारण उसे दो बार कैंटीन से निकाला भी जा चुका है। मम्मी, पापा ने भी इस रिश्ते से इंकार कर दिया और यह समझाने की कोशिश भी की कि विवेक के साथ उसका कोई भविष्य नहीं है। लेकिन उस पर तो विवेक के प्यार का भूत सवार था, इसलिए सभी उसे अपने दुश्मन दिखाई दे रहे थे। तय मुहूर्त में सगाई की रस्म भी पूरी हो गई। रोहिणी ने घर से भाग जाने का निश्चय कर लिया। इसके लिए विवेक के साथ योजना भी बना डाली।
पापा और छोटी बहन मिठाई और कपड़ों की खरीददारी के लिए बाज़ार गए हुए थे शाम को तिलक जाने वाला था। मां घर के काम में लगी हुई थी। रोहिणी बार बार घड़ी की तरफ देख रही थी। वह उठकर किचन में गई। मम्मी का मनपसंद नीबू का शरबत बनाया और उसमें नींद की दो गोलियां मिलाकर उन्हें यह कहते हुए पकड़ा दिया कि शरबत पीकर कुछ देर आराम कर लें। उसे यह सब करते हुए बहुत बुरा लग रहा था लेकिन वह विवेक को खोना भी नहीं चाहती थी। मम्मी के सोते ही उसने विवेक को फोन करके बुला लिया। विवेक के कहने पर उसने घर के सारे जेवर और नगदी भी बांध ली और चुपचाप वहां से निकलकर मुंबई जाने वाली ट्रेन में जा बैठे। कुछ दिन यहां वहां घूमे। जब भी वह विवेक से शादी की बात करती तो वह कभी अच्छी नौकरी और एक अच्छे घर की व्यवस्था करने का बहाना बनाकर टाल देता। लेकिन सच तो यह था कि वह नौकरी खोजने के बहाने निकलता और शाम को घूम फिरकर वापस आ जाता। एक दो बार तो वह नशे में धुत होकर भी लौटा। धीरे धीरे पैसे भी खर्च होने लगे। जब इस बारे में उसने विवेक को बताया तो उसने बड़ी लापरवाही से उत्तर दिया, अकेले मेरा खर्चा थोड़े ही है, तुम भी तो खाती पहनती हो, कल से तुम्हीं कोई काम पकड़ लो। बड़ी आई मुझे समझाने वाली!”
रोहिणी, विवेक का यह रूप देखकर दंग रह गई। उसका मन पश्चाताप से भर गया। बहन के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे, “दीदी, विवेक अच्छा लड़का नहीं है। “वह अपना सिर पकड़कर बैठ गई। विवेक के साथ की चाह में उसने अपने मम्मी पापा के अरमानों, उनकी इज्जत का तनिक भी ख़्याल नहीं किया। रोते रोते अब आंख लग गई पता ही नहीं चला। सुबह नींद खुली तो देखा विवेक वहां नहीं था। सोचा किसी काम से गया होगा लेकिन वह रात में भी नहीं लौटा तो रोहिणी घबरा गई। आसपास के लोगों से पूछा तो फुटपाथ पर रहने वाले छोटू ने बताया कि उसे एक बैग लिए स्टेशन की तरफ जाते देखा है। वह दौड़कर घर पहुंची तो देखा कि बाकी बचे गहने और नगदी गायब थे। वह सिर पर हाथ रखकर बैठ गई। दिल जोरों से धड़क रहा था। क्या करे? कहां जाए? इतने बड़े शहर में किससे मदद मांगे? इसी उधेड़बुन में बैठी थी कि पड़ोस की आंटी को अंदर आते देखा। उन्हें सारी बात बताकर वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। उन्होंने चुप कराते हुए समझाया कि वह घर वापस चली जाए वे किसी तरह टिकट की व्यवस्था करवा देंगी। वह वापस जाने और मम्मी पापा का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी लेकिन करती भी क्या? जिस आशियाने का सपना लेकर वह घर से निकली थी वह तो बसने से पहले ही उजड़ चुका था।
घर की चौखट पर आकर उसने डोर बेल बजाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि पापा ने दरवाज़ा खोल दिया। वह ठिठक गई। अगले ही पल वह पापा के पैरों पर गिरकर माफी मांगने लगी। पापा ने गहरी सांस भरते हुए उसे उठाया और उसकी ओर देखते हुए केवल इतना ही बोल पाए, “क्या कमी रह गई थी हमारी परवरिश में जो तुमने ये सब किया?” रोहिणी फफक कर रोने लगी। मम्मी कहां हैं, मुझे उनसे माफी मांगनी है कहते हुए वह अंदर घुसी। सामने दीवार पर मां की तस्वीर लगी थी जिसमें ताजे फलों की माला लटक रही थी। पता चला कि उसके जाने के बाद घर की इज्जत बचाने के लिए छोटी बहन की शादी कर दी गई थी इसके लिए पापा को काफी गिड़गिड़ाना पड़ा था। मम्मी इस सदमे को झेल नहीं पाईं और हार्टअटैक से उनकी मृत्यु हो गई। वह अपना सिर पकड़कर जड़वत बैठ गई। जो गुनाह उसने किया था शायद उसका कोई प्रायश्चित नहीं था।
— कल्पना सिंह