मोटर कार
पापा ने ली मोटर कार,
मोटर में हैं पहिए चार,
मोटर की पौं-पौं को सुनकर,
सैर को मैं होता तैयार.
सड़कों पर चलती है मोटर,
गियर से करती है काम,
करके शान से इसमें सवारी,
मिलता है मुझको आराम.
पापा ने ली मोटर कार,
मोटर में हैं पहिए चार,
मोटर की पौं-पौं को सुनकर,
सैर को मैं होता तैयार.
सड़कों पर चलती है मोटर,
गियर से करती है काम,
करके शान से इसमें सवारी,
मिलता है मुझको आराम.
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कविता अच्छी लगी। हार्दिक धन्यवाद। सादर नमस्ते जी।
प्रिय मनमोहन भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन.