कविता

ये प्रेम नहीं कोई खेल प्रिये

ये प्रेम नहीं कोई खेल प्रिये,
यह तो मर्यांदित बन्धन हैं।
तुम हृदय में कुंठा मत पालों ,
मैं तुलसी जैंसी पावन हूॅ॑।।
वृंदावन की मिट्टी हूॅॅ॑
हर जन्म तुम्हें ही पुॅ॑जूगीं।
तौलों मत मुझको अरबी डॉलर से
मैं तो तेरे ही रूह में बसती हूॅ॑ ।।
राधा का सा प्रेम लिए
माॅ॑ सबरी सी राह को तकती हूॅ॑।
तुम मुझमें अप्सरा पर ढूंढों
मैं तुझमें ही बसते विष को पीती हूॅ॑ ।।
तुम सदा समझते हो मुझको,
मैं इक विदूषी नारी हूॅ॑ ।
पर नहीं प्रिये, मैं कोई विदूषी
मैं तो तेरे ही मन की श्रद्धा हूॅ॑ ।।
तुम कलुषित करों न अपना तन,
मत पाखंडी कहलाओं।
बैठों तुम प्रियवर ! व्यासपीठ पर,
मैं जिह्वा से तेरे माॅ॑ वीणा बन निकलूंगी ।।
ये प्रेम नहीं कोई खेल प्रिए ।।
— रेशमा त्रिपाठी

रेशमा त्रिपाठी

नाम– रेशमा त्रिपाठी जिला –प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश शिक्षा–बीएड,बीटीसी,टीईटी, हिन्दी भाषा साहित्य से जेआरएफ। रूचि– गीत ,कहानी,लेख का कार्य प्रकाशित कविताएं– राष्ट्रीय मासिक पत्रिका पत्रकार सुमन,सृजन सरिता त्रैमासिक पत्रिका,हिन्द चक्र मासिक पत्रिका, युवा गौरव समाचार पत्र, युग प्रवर्तकसमाचार पत्र, पालीवाल समाचार पत्र, अवधदूत साप्ताहिक समाचार पत्र आदि में लगातार कविताएं प्रकाशित हो रही हैं ।