ये प्रेम नहीं कोई खेल प्रिये
ये प्रेम नहीं कोई खेल प्रिये,
यह तो मर्यांदित बन्धन हैं।
तुम हृदय में कुंठा मत पालों ,
मैं तुलसी जैंसी पावन हूॅ॑।।
वृंदावन की मिट्टी हूॅॅ॑
हर जन्म तुम्हें ही पुॅ॑जूगीं।
तौलों मत मुझको अरबी डॉलर से
मैं तो तेरे ही रूह में बसती हूॅ॑ ।।
राधा का सा प्रेम लिए
माॅ॑ सबरी सी राह को तकती हूॅ॑।
तुम मुझमें अप्सरा पर ढूंढों
मैं तुझमें ही बसते विष को पीती हूॅ॑ ।।
तुम सदा समझते हो मुझको,
मैं इक विदूषी नारी हूॅ॑ ।
पर नहीं प्रिये, मैं कोई विदूषी
मैं तो तेरे ही मन की श्रद्धा हूॅ॑ ।।
तुम कलुषित करों न अपना तन,
मत पाखंडी कहलाओं।
बैठों तुम प्रियवर ! व्यासपीठ पर,
मैं जिह्वा से तेरे माॅ॑ वीणा बन निकलूंगी ।।
ये प्रेम नहीं कोई खेल प्रिए ।।
— रेशमा त्रिपाठी