रावण
रावण कौन था, उसके पिता का नाम क्या था और उसकी माता कौन थी? यह तीनों ही प्रश्न पौराणिक कथा कहानियों में अक्सर आते रहते हैं और तीनों ही प्रश्नों के उत्तर अलग-अलग शास्त्रों में थोड़ी बहुत भिन्नता लेकर चलते हैं। महाभारत के रामोख्यान पर्व के दो सौ चोहत्तरवें अध्याय में ऋषि मार्कण्डेय जी एवं युधिष्ठर संवाद में जो तथ्य हमें प्राप्त हुये, वह तर्कसंगत लगे। कुछ प्रसंग ऐसे भी लगे जिनका वास्तविक अर्थ और सन्दर्भ शायद कुछ और रहा हो मगर रहस्यमय बनाये रखने अथवा ईश्वरीय शक्ति, ऋषि मुनियों की साधना से प्राप्त शक्ति को दर्शाने के लिये अलग तरह से प्रयोग किया गया है। जैसे ”ऋषि पुलस्त्य ने स्वयं अपने आपको ही दूसरे रूप में प्रकट कर लिया। पुलस्त्य के आधे शरीर से जो दूसरा द्विज प्रकट हुआ उसका नाम विश्रवा था।“ हमारा मानना है कि ऋषि पुलस्त्य विनम्र थे परन्तु अपने पुत्र वैश्रवण (जिसका नाम बाद में कुबेर पड़ा) की अपने प्रति उपेक्षा तथा अपने पितामह ब्रह्मा के प्रति लगाव से उपेक्षित महसूस कर क्रोध वश बदले की भावना से विश्रवा हो गये होंगें। यह हमारी व्याख्या है, इस पर हमारा धर्मग्रन्थों से अथवा गुणीजनों से कोई विरोध नहीं है अपितु समझने का प्रयास मात्र है, जो कि हमे तर्कसंगत भी लगा।
महाभारत युद्ध के पश्चात् हस्तिनापुर का राजकाज धर्मराज युधिष्ठर ने संभाल लिया। युधिष्ठर धार्मिक व ज्ञानी थे। एक बार महाराज युधिष्ठिर ने ऋषि मार्कण्डेय जी से अपने पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास एवं परम्पराओं को जानने की इच्छा प्रकट की। जिसका वर्णन महाभारत के रामोपख्यान पर्व दो सौ चैहत्तरवें अध्याय में आया है। उसी को रावण के सन्दर्भ में यहाँ देने का प्रयास किया गया है।
ऋषि मार्कण्डेय जी युधिष्ठिर से बताते हैं-
पितामहे रावणस्य साक्षाद् देवः प्रजापतिः।
स्वयंभू सर्वलोकानां प्रभुः स्रष्टा महातयाः।। (11)
हे युधिष्ठिर – सम्पूर्ण जगत के स्थायी सृष्टा, प्रजापालक और स्वयंभू ब्रह्मा साक्षात् भगवान ही रावण के पितामह थे। (ऋषि पुलस्त्य को ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में एक कहा जाता है। इसलिये ब्रह्मा के पुत्र पुलस्त्य और उनके पुत्र रावण ब्रह्मा के परपौत्र हुये)
पुलस्तयो नाम तस्यासीन्मानसो दयितः सुतः।
तस्य वैश्रवणो नाम गवि पुत्रोऽभवत् प्रभुः।। (12)
ब्रह्मा जी के परमप्रिय मानस पुत्र पुलस्त्य जी थे। उनमें उनकी गौ नामक पत्नी के गर्भ से वैश्रवण नामक शक्तिशाली पुत्र हुआ।
पितरं स समुत्सृज्य पितामहमुपस्थितः।
तस्य कोयात् पिता राजन् ससर्जात्मानमात्मना।। (13)
स जज्ञे विश्रवा नाम तस्यातमार्धेन वैदिजः।
प्रतीकाराय सक्रोधस्ततो वैश्रवणस्य वै।। (14)
वैश्रवण अपने पिता पुलस्त्य को छोड़कर पितामह ब्रह्मा की सेवा में रहने लगा। इससे उस पर क्रोध करके पिता पुलस्त्य ने स्वयं अपने आपको ही दूसरे रूप में प्रकट कर लिया। पुलस्त्य के आधे शरीर से जो दूसरा द्विज प्रकट हुआ, उसका नाम विश्रवा हुआ। विश्रवा सदैव ही वैश्रवण से बदला लेने के लिये उस पर कुपित रहता था।
पितामहस्तु प्रीतात्मा ददौ वैश्रवणस्य ह।
अमरत्वं धनेशत्वं लोकपालत्वमेव च।। (15)
परन्तु पितामह ब्रह्म जी वैश्रवण पर प्रसन्न थे। अतः उन्होंने विश्रवण को अमरत्व प्रदान किया और धन का स्वामी तथा लोकपाल बना दिया।
इशानेन तथा सख्यं पुत्रं च नलकूबरम्।
राजधानीनिवेशं च लंङ्का रक्षोगणान्विताम्।। (16)
पितामह ब्रह्माजी ने वैश्रवण की महादेव जी से मैत्री करायी। उन्हें नलकबूर नामक पुत्र दिया तथा राक्षसों से भरी लंका को उनकी राजधानी बनाया।
विमानं पुष्पकं नाम कामगं च ददौ प्रभुः।
यक्षाणामाधिपत्यं च राजराजत्वमेव च।। (17)
साथ ही उन्हें इच्छानुसार विचरने वाला पुष्पक विमान दिया। इसके अलावा ब्रह्मा जी ने वैश्रवण को यक्षों का स्वामी बना दिया और उन्हें राज राज की उपाधि प्रदान की। (यही वैश्रवण कुबेर के नाम से विख्यात हुये)
ऋषि मार्कण्डेय जी महाराज युधिष्ठिर को बताते हैं (अध्याय 275)
पुलस्त्यस्य तु यः क्रोधादर्धदेहोऽभवन्मुनिः।
विश्रवा नाम सक्रोधः स वैश्रवणमैक्षत।। 275 (1)
पुलस्त्य के क्रोध से उनके आधे शरीर से जो मुनि विश्रवा पुलस्त्य क्रोध से उनके आधे शरीर से जो मुनि विश्रवा प्रकट हुये थे वह वैश्रवया यानि कुबेर को कुपित दृष्टि से देखने लगे।
बुबुधे तं तु सक्रोधं पितरं राक्षसेश्वरः।
कुबेरस्तत्प्रसादार्य यतते स्म सदा नृप।। (2)
जब कुबेर को पता चला कि उसके पिता उससे रूष्ट रहते हैं, तब वह उन्हें प्रसन्न करने के उपाय करने लगा।
स राजराजो लङ्कायां न्यवसन्नरवाहनः।
राक्षसीः प्रददौ तिस्त्रः पितुर्वे परिचारिकाः।। (3)
राज राज कुबेर स्वयं लंका में रहते थे और मनुष्यों द्वारा ढोई जाने वाली पालकी से चलते थे, इसलिये नरवाहन भी कहलाये थे। उन्होंने अपने पिता विश्रवा की सेवा के लिये तीन राक्षस कन्याओं को परिचारिकाओं के रूप में नियुक्त कर दिया।
पुष्पोत्कटा च राका मालिनी च विशाम्पते।
अन्योन्यस्पर्धया राजन् श्रेयस्कामाः सुमध्यमाः।। (5)
उन तीन परिचारिकाओं के नाम पुष्पोत्कटा, राका तथा मालिनी थे। वे तीनों सुन्दरियाँ अपने-अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु मुनि की सेवा करती थीं।
स तासां भगवास्तुष्टो महात्मा प्रददौ वरान्।
लोकपालोपयान् पुत्रानैकैकस्या यथेप्सितान्।। (6)
महात्मा विश्रवा उनकी सेवा से प्रसन्न हुये और उन्हें लोकपालों के समान पराक्रमी पुत्र होने का वरदान दिया।
पुष्पोत्कटायां जज्ञाते द्वौ पुत्रौ राक्षसेश्वरौ।
कुम्भकर्णादशग्रीवौ बलेनाप्रतिमौ भुनि।। (7)
पुष्पोत्कटा के दो पुत्र रावण व कुम्भकर्ण हुये। ये दोनों ही राक्षसों के अधिपति थे। भूमण्डल में इनके समान बलवान दूसरा कोई नहीं था।
मालिनी जनयामास पुत्रमेंक विभीषणम्।
राकायां मिथुन जज्ञे खरः शूर्पर्णखा तथा।।
मालिनी ने एक ही पुत्र विभीषण को जन्म दिया तथा राका के गर्भ से एक पुत्र व एक पुत्री खर व शूपर्णखा का जन्म हुआ।
इस प्रकार महर्षि मार्कण्डेय जी ने महाराज युधिष्ठर को बताया कि भगवान ब्रह्मा जी के मानस पुत्र पुलस्त्य के ज्येष्ठ पुत्र वैश्रवण (कुबेर) हुए। महात्मा पुलस्त्य के क्रोध रूप ऋषि विश्रवा तथा सेविका पुष्पोत्कटा के दो पुत्र रावण व कुम्भकरण, ऋषि विश्रवा व सेविका मालिनी से पुत्र विभीषण तथा विश्रवा व सेविका राका से पुत्र खर व पुत्री शुपर्णखा का जन्म हुआ। इस प्रकार रावण व कुम्भकरण विभीषण, कुबेर, खर व सुर्पणखा के एक पिता व अलग-अलग माताओं से उत्पन्न सौतेले बहन भाई थे।
नोट: कुछ शास्त्रों में
1. रावण का जन्म स्थान गौतमबुद्ध नगर (उ0प्र0) के बिसरस गाँव में बताया जाता है। कहते हैं कि यहाँ एक विशाल शिवलिंग आज भी है।
2. कुछ ग्रन्थों में विश्रवा को पुलस्त्य का पुत्र बताया गया है। विश्रवा को विश्वश्रवा या रत्नश्रवा कहने का भी उल्लेख है।
3. विश्रवा की दो पत्नियों – देववर्णी तथा कैकसी का भी वर्णन शास्त्रों में आता है।
4. कैकसी से उत्पन्न पुत्र ही रावण होने का उल्लेख भी आता है।
5. ब्रह्मा के मानस पुत्र पुलस्त्य की पत्नी का नाम हविभुर्वा होने का भी उल्लेख है तथा पुलस्त्य व हविभुर्वा को रावण के दादा-दादी कहा गया है।
6. अन्य ग्रन्थ में विश्रवा की पत्नी के नाम पुण्योत्कटा व कैकसी का भी उल्लेख है। पुण्योकटा के गर्भ से कुबेर तथा कैकसी के गर्भ से रावण, कुम्भकरण, खर, विभीषण व सुपर्णखा के जन्म होने की गाथा है।
— अ. कीर्तिवर्द्धन