कविता

वीर सावरकर

बचपन का नाम तात्या वीर बहुत पराक्रमी,
बाजीराव के वंश का सिंह वह निराला था।
छोटा था उम्र में पर साहस का था धनी,
दैदीप्यमान ललाट माँ भारती का रखवाला था।।
उसकी आभा नव आदित्य सी, चहुं ओर पल्लवित करती,
ओजमयी वाणी जैसे, पाञ्चजन्य गुंजित करती।
शौर्य का प्रतिमान, हिंदी की स्वयं हुंकार था,
तीक्ष्ण अरी भेदन करे जो, गांडीव की टँकार था।।
पूर्ण स्वराज की अलख जगाता, अनजान विदेशी धरती पर,
लंदन की गलियों में जिसके उद्दंडता के चर्चे थे।
कॉलेज में सभाओं में भारत प्रेम जगाने पर,
नाराज अंग्रेजी अधिकारी अपनी नाकामी से गर्जे थे।।
चल दिया क्रांति के पथ पर सावरकर को देख वह बड़भागी,
मदन लाल ढींगरा ने 3 3 गोलियां कर्जन वायली के वक्ष पर दागी।
गरज गया लंदन सहम गया यूनियन जेक था,
एक क्रांतिकारी का साहस अदम्य था, नेक था।।
लगाई थी छलांग लंबी आजादी की जहाज से,
फ्रांस की सुरक्षा पंक्ति ने देशभक्ति का मान ना किया।
सौंप दिया अंग्रेजी लंपटों की कैद में फिर से,
विदेशी पत्रकारों ने भी इस षड्यंत्र का जमकर प्रतिकार किया।।
दो दो बार कालापानी की यंत्रणा उसका पथ न डिगा पाई,
कोल्हू से तेल निकालने जैसी पशुता जेलरों ने करवाई।
यंत्रणा से न साहस कम था, न तेज ही कम हुआ,
क्रांति की मशाल प्रति पल क्रांतिवीर ने मन में जलाई।।
सेल्युलर बनी साक्षी “काव्य” का सृजन हुआ,
कालकोठरी और कोयले का देशभक्ति से मिलन हुआ था।
जीवन संघर्षों से भरा हार कभी मानी नही,
जो ठानी वह पूरी करी, वरना तो ठानी नही।।
देश के युवाओं का आदर्श बनकर छा गया।
जैसे अंधियारा मिटाने स्वयं पीतांबर आ गया।।
स्वतंत्र देश का नायक यदि उसको बना दिए होते,
सिरमौर होता भारत जो हम सावरकर का रास्ता अपना लिए होते।।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश