ग़ज़ल
सियासत में सभी कहते बदी है।
जो डूबा तर नहीं पाया कमी है।
क़यामत ये नयी दुनियाँ कहूँ क्या
इसे कुछ कह न पाना बेकसी है।
अदीबों का यहाँ है क़त्ल होता
यहाँ गंगा सदा उल्टी बही है।
कहें देखो सभी साक़ी को’ रानी
महारानी भुलायी सी गयी है।
भगत सिंहों तुम्हें खोजे जमाना।
तुम्हीं से आस दुनियाँ को बची है।।
— निवेदिता श्री