कौन थे जोगेंद्र नाथ मंडल ?
मंडल के नाम का गायब होना. कांग्रेसियों के खिलाफ सबसे बड़ा प्रमाण मानिए क्योंकि यह एक नाम इस बेमेल गठजोड़ के पीछे की खतरनाक साज़िश की धज्जियाँ उड़ा देगा. वहीं पाकिस्तान में इस्लामिक दलितों के साथ-साथ दलितों को ठेंगा ही दिखा दिया जाता है, जबकि भारत से कई गुना ज्यादा मुस्लिम दलित और गरीब वर्ग वहां है, लेकिन इस्लामवाद के नाम पर उनकी आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं है. खासतौर से कम्युनिस्टों की इस्लामिक-गैर-बराबरीवाद पर जान सूखी जाती है. उनके अज्काफ, अज्गाफ, अशराफ वर्ग पर कभी वामी बुद्धिजीवी लिखने की हिम्मत नहीं जुटाते.
ध्यातव्य है, पाकिस्तान तो मुसलमानों के लिए बना था फिर वह दलितों को बजट और आरक्षण क्यों देगा? तो मैं कहूंगा आप नवजात शिशु हैं, समझ और सूचनाएं आपको बिलकुल नही.पाकिस्तान बनने से पहले दलितों को ऐसा ही प्रलोभन दिया गया था. 1947 से पहले अम्बेडकर जी की पार्टी के एक नेता जोगेन्द्रनाथ मंडल ने एससीएफ और मुस्लिम लीग में समझौता किया, हमें भारत विखंडित करके एक राष्ट्र बनाना है. दलितों और मुसलमानों के लिए, जिसका नाम होगा- पाकिस्तान. भारत-पाक बंटवारे के विषय को लेकर दोनों नेताओं में विवाद था. बाद में अपनी पुस्तक ‘थाट्स ऑन पाकिस्तान, में डॉक्टर बी आर अंबेडकर लिखते हैं कि हजारों साल का दुश्मन है जो तब तक लड़ता रहेगा जब तक हिंदू नहीं समाप्त हो जाता, इसलिए भारत वर्ष से एक-एक मुसलमानों को निकाल कर पाकिस्तान भेज देना चाहिए, क्योंकि दुश्मनों का साथ रहना उचित नहीं है. डॉ अम्बेडकर इस बात के कड़े समर्थक थे कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान का अगर बंटवारा अगर मज़हबी आधार पर हो रहा है तो कोई भी मुसलमान भारत में ना रहे. नहीं तो समस्याएं बरकार रहेंगी.
विधिवेत्ता जोगेंद्र नाथ मंडल ने भारत विभाजन के वक्त अपने दलित अनुयायियों को पाकिस्तान के पक्ष में वोट करने का आदेश दिया था. अविभाजित भारत के पूर्वी बंगाल और सिलहट (अभी बांग्लादेश) में करीब चालीस प्रतिशत आबादी हिंदुओं की थी, जिन्होंने पाकिस्तान के पक्ष में वोट किया और मुस्लिम लीग, मण्डल के सहयोग से भारत का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने मे सफल हुआ. बाबा साहब ने जोगेन्द्रनाथ मंडल से किनारा कर लिया. वह भारत के कानून मंत्री बने. मंडल दलितों की एक बड़ी संख्या लेकर पाकिस्तान गए. जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने, उसने सोचा अब पाकिस्तान बन गया है, दलितों के मज़े होंगे. पर हुआ उल्टा. संगठित आक्रामक समाज दलितों के धर्मांतरण पर तुल गया. दलितों को मिलने वाले सभी प्रकार के भत्ते बंद कर दिए. दलितों के मुसलमान किरायेदारों ने दलितों को किराया देना बंद कर दिया. दलितों की लड़कियां मुसलमान आये दिन उठा के ले जाते. आये दिन दंगे होने लगे. अब मुस्लिम लीग को वैसे भी दलित-मुस्लिम दोस्ती का ढोंग करने की ज़रूरत नहीं रह गयी थी. उनके लिए हर गैर-मुस्लिम काफिर है. पूर्वी पाकिस्तान में मण्डल की अहमियत धीरे-धीरे खत्म हो चुकी थी. दलित हिंदुओं पर अत्याचार शुरू हो चुके थे. तीस प्रतिशत दलित हिन्दू आबादी की जान-माल-इज्जत खतरे मे थी. पाकिस्तान में सिर्फ एक दिन 20 फरवरी 1950 को दस हजार से ऊपर दलित मारे गए. ये सब बातें किसी संघी किताब में नहीं बल्कि खुद जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने इस्तीफे में लिखी हैं. मंडल जी ने हिंदुओं के संग होने वाले बरताव के बारे में जिन्ना को पत्र लिखा कि मुस्लिम, हिंदू वकीलों, डॉक्टरों, दुकानदारों और कारोबारियों का बहिष्कार करने लगे, जिसकी वजह से इन लोगों को जीविका की तलाश में पश्चिम बंगाल जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. गैर-मुस्लिमों के संग नौकरियों में अक्सर भेदभाव होता है. लोग हिंदुओं के साथ खान-पान भी पसंद नहीं करते. पूर्वी बंगाल के हिंदुओं के घरों को आधिकारिक प्रक्रिया पूरा किए बगैर कब्जा कर लिया गया और हिंदू मकान मालिकों को मुस्लिम किरायेदारों ने किराया देना काफी पहले बंद कर दिया था. जोगेन्द्र नाथ ने कार्यवाही हेतु बार- बार चिट्ठियां लिखीं, पर इस्लामिक सरकार को न तो कुछ करना था, न किया. आखिर उन्हें समझ में आ गया कि उन्होंने किस पर भरोसा करने की मूर्खता कर दी है.
विधिवेत्ता मंडल जी को खुद लगा कि अब उनकी जान पाकिस्तान में सुरक्षित नहीं है और वह अपने दलितों को पाकिस्तान में छोड़ के भाग निकले और पश्चिम बंगाल में आ कर गुमनामी की जिंदगी में मरे.
जोगेंद्र नाथ मंडल का इस्तीफा किसी भी दलित के लिए हॉरर मूवी से कम नहीं. 1950 में बेइज्जत होकर जोगेंद्र नाथ मंडल भारत लौट आये. भारत के पश्चिम बंगाल के बनगांव में वो गुमनामी की जिन्दगी जीते रहे.
अपने किये पर 18 साल पछताते हुए आखिर 5 अक्टूबर 1968 को उन्होंने गुमनामी में ही आखिरी साँसे ली. एक तरफ दलित-मुस्लिम गठजोड़ के जनक मण्डल का शर्मनाक अंत हुआ और दूसरी तरफ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को हैदराबाद निज़ाम और इस्लामिक संस्थानों ने मुसलमान बन जाने के लिए अरबों रुपयों तथा तमाम तरह के पदों का लालच दिया लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया. उनका कहना था कि हम इसी भारतीय भूमि से निकली हुई सनातन चेतना से जुड़े रहेंगे. राष्ट्र को काटने-तोड़ने का काम बिल्कुल नहीं करेंगे. ईसाई मिशनरियों ने भी उनसे संपर्क किया और चाहते थे कि डॉक्टर अंबेडकर किसी भी तरह अनुयायियों के साथ ईसाई हो जाएं और उनका बेस मजबूत हो जाए.
उन्होंने बड़ी कठोरता के साथ मिशनरियों को मना किया. प्रखर राष्ट्रवादी, इस्लाम-कम्युनिस्ट-मिशनरी विरोधी, सच्चे दलित नेता भारत रत्न बन इतिहास में अमर हो गए. बंगाल का बड़ा हिस्सा बांग्लादेश तैयार हो गया. उस समय वहां पर मुस्लिम सिर्फ सत्ताईश प्रतिशत था. वह हिस्सा पूर्वी-पाकिस्तान के रूप में पाकिस्तान बन जाने की वजह से हिंदू घटने लगा. बहत्तर प्रतिशत से घटकर अड़तालीस प्रतिशत हुआ. 1971 आते-आते अट्ठाईश प्रतिशत हुआ और आज वहां केवल 6.3 परसेंट हिंदू बचा है. सभी दलितों को मार-मूर कर मुसलमान बना लिया या भगा दिया. आज पूरे पाकिस्तान में केवल दलित जातियां ही बची है.
ध्यातव्य है, पाकिस्तान गये दलितों की दुर्दशा का पूरा आरोप जोगेंद्र नाथ मंडल डाला गया. एससीएफ पार्टी का नाम बदल दिया गया और आरपीआई नाम से जानते हैं. एक बार फिर से वही रणनीति और हिन्दुओं को कई हिस्से में विभाजित करने की चाल चली गई है. देश भर में कई राजनीतिक पार्टियां इस पर खुलकर खेल रही है.
विधिवेत्ता जोगेंद्र नाथ मंडल के विकल्प तो नहीं, किन्तु उनके पाकिस्तान प्रवास भी भलीभाँति न रह सके !