चैता विरहा
अब तो इस सुअवसर पर नमकीन चीजें भी बनती हैं, गुजिया, भुजिया, दहीबड़ा, पापड, पकौड़े, कचरी, बड़ी इत्यादि। अब तो होली के दूसरे-तीसरे दिन, यहाँ तक कि सप्ताहांत तक बासी पूवे खाने-खिलाने का अलग ही क्रेज है, वो भी शिमला मिर्चवाले अचार के साथ स्वाद का क्या कहना ? फागुन पूर्णिमा को लेकर सप्ताह-पन्द्रह दिनों से होली-गीतों और कजरी-गीतों की रिहर्सल शुरू हो जाती है, किन्तु अब वैसी होली-गीतों के गायन का जमाना लद गए ।
पहले तो घर-घर जाकर लोग ढोलों की थाप और खँजरी बजा-बजा कर होली का सेलिब्रेशन करते थे, लोग राजनीतिक व्यक्तियों पर कमेंट कसते थे और साथ ही कह देते थे- बुरा ना मानो होली है।
हाँ, पिछले कुछ वर्षों से बिहार में होली त्योहार में एक खास बात देखने को मिल रही है कि शराबबन्दी के कारण शराब पास भी फटक भी नहीं रहा है, किन्तु पड़ोसी राज्यों से चोरी छिपे मंगवाई जानेवाली शराब पर शराबियों के साथ-साथ थानेदारों के नपने की ख़बर से यह भी पूर्णतः बन्द हो गयी है।