दोस्त के नाम अर्ज
सादर नमस्ते !
संभवतः, हमदोनों एक-दूसरे को तब से जान रहे हैं, जितनी भाभी की उम्र भी नहीं होगी ! फ़ोन पर भाभी से अबतक एकाध बार ही बातें हुई होंगी !
यह तो जानते ही होंगे कि देश के सभी कार्यालय डेस्क पर सहकर्मियों के बीच पारिवारिक प्रतिबद्धताओं से लेकर राजनीतिक बातें होती ही है ! किन्तु वहाँ भी व्यक्तिशः बातें बहुत कम ही होती है ! हाँ, बहुत सारी सम्बन्धित बातें तो अन्य सहकर्मी बता देते हैं ! जो उनकी द्वारा भी इतर शेयर किए जाने के प्रसंगश: है !
वैसे तुम जानते ही हो, मैं Writer हूँ तथा प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सवर्णों से घिरा है । इसके विन्यस्त: ‘सोशल मीडिया’ विचार-अभिव्यक्ति का माध्यम बनता जा रहा है और मेरी FB पोस्ट पर किसी के नाम नहीं रहते !
वैसे व्यंग्यात्मक पोस्ट तो सिर्फ़ आईना दिखाने के लिए होता है ! बदलना तो लोगों को खुद होता है ! मेरा परिवार तुम्हारे परिवार का शुभचिंतक है और जिनमें सभी सदस्यों के लिए आदर और स्नेह के भाव शामिल हैं !
मेरे विरोधियों द्वारा भी कई बातें साजिशतन उकसाये जाते रहे हैं ! जहाँ मुझे सपोर्ट मिलना चाहिए, वहाँ नहीं मिली ! हमलोग ‘शून्य’ से उठे हैं, भाई ! गरीबी को भोगा है !
अरे यार ! कम से कम हमलोग दूसरों के बहकावे में नहीं आएं और पीठ पीछे दूसरे के विरुद्ध सुने ही क्यों, क्योंकि हमलोग काफी बौद्धिक विरासत सँभाले हुए हैं !
शेष कुशल !
सामान्य दिनों में कभी चाय पर भी तो बुलाते, एक कसक रह ही गया !
दोस्त के नाम अर्ज़ है-
“दोस्त को दौलत की निगाह से नहीं देखा करते हैं;
वफ़ा करनेवाले दोस्त अक्सर गरीब हुआ करते हैं !”
सादर भवदीय- पद नख रज सम।