नवगीत : पथिक को मंजिल मिलेगी
पथिक को मंजिल मिलेगी
सतत यात्रा के सहारे
लिए आशा स्वाति जल की
चकोरी नभ को निहारे
झरे झरना चीर पर्वत
पहाड़ी पर पथ बनाती
निरंतर बढ़ लक्ष्य पथ पर
जलधि में खुद को मिलाती
बढ़ो तुम भी तान सीना
हटा कष्टों को किनारे
पथिक को मंजिल मिलेगी
सतत यात्रा के सहारे
लक्ष्य हो बस एक मन में
पार्थ के सम शुक नयन पर
त्याग दो तुम चाल शश की
मध्य में मत अब शयन कर
चाल कच्छप की निरंतर
दौड़ता है धैर्य धारे
पथिक को मंजिल मिलेगी
सतत यात्रा के सहारे
— अनंत पुरोहित अनंत