पंच चामर छंद : छटा बिखेर प्रेम की
अतीत में भविष्य में, नहीं प्रवेश चाहिए
सदैव वर्तमान में, अचिंत हो विराजिए।।
विकार राग द्वेष का, न चित्त में रहे कभी।
न लोभ मोह शोक हो, समाप्त व्यग्रता सभी।।
प्रबुद्ध ज्ञान ज्योति की, बहे सु-धार नर्मदा।
सुकर्म धर्म चित्त में, रहे अभीष्ट सर्वदा।।
छटा बिखेर प्रेम की, घिरे न मेघ रोष का।
निशंक तुष्ट भाव हो, कभी न गर्व कोष का।।
— अनंत पुरोहित ‘अनंत’